"जा, जा, "मेरी अजीव रसोजीके नमूने : भिमली और गुड़की टॉफी, सेंजनेकी 'फलियोंके सागके साथ बनायी हुी खिचड़ी, और दूसरी कितनी ही स्वादिष्ट बानगियाँ बिलकुल मौलिक और स्वयं प्रेरित !" जिस पर मैंने वल्लभभाभीसे कहा "जेलसे ही सेजनेकी फलियाँ मिल जाय, तो में आपके लिो बना दूं।" वल्लभभाी कहने लगे- ये तेरेसे क्या बनेंगी?" बापू कहने लगे- “वल्लभभाभीको तो वे बेसनमें चढ़िया बनायी हुी चाहिये और तुम अबली हुी फलियोंकी बात कहते हो!" फिर बोले- अगर दुनियामें कहीं भी सागको बिलकुल ही बिगाड़ कर बनाया जाता हो तो वह हिन्दुस्तानमें । गिवनकी पुस्तकके शुरूमें रोमके दरवारोंके खानपान और मैश-आरामकी जैसी बात लिखी है, वही हालत हमारी है । हमने ग्वानेमें की तरहके कृत्रिम स्वाद बना लिये, कभी मसाले खोज लिये और अिन मसालों के स्वादके लिये ही साग खाते हैं ।" मैंने कहा "कितनी ही चीजें मसालेके बिना खामी ही नहीं जा सकती। मीठा जमीकन्द अबला हुआ खाया जा सकता है, मगर तीखा हो तो भट्टीमें भूनना चाहिये और बादमें असमें गुइ, अिमली और मसाला चाहिये ।" बापू बोले. जिस जमीकन्दको मैं न खाने लायक मानूंगा । अरवीके पत्ते कोी अबाल कर नहीं खाता, क्योंकि खाये नहीं जा सकते; और खाये नहीं ना सकते, अिसलिओ अनमें वेसन और मिट्टी पत्थर वगैरा डालते हैं । यह क्यों न समझा जाय कि ये पत्ते खाने लायक नहीं हैं ?" . "तो
. होर वेलिशा कहता है-“१६० लाख पौण्डका विदेशी माल आना कम हो गया । अितनी देशमें बचत हुी । मगर हमारा माल भी तो विदेश जाना बन्द हो गया, असका क्या किया जाय ? यह विकट प्रदन तो लोजान और ओटावामें ही हल हो सकता है, जहाँ साम्राज्यके भीतर खुले व्यापारकी नीति निश्चित होनी चाहिये । अगर कोभी हमारा माल नहीं खरीदे, तो जबरदस्ती कैसे खरीदवायेंगे ?" विनाश काले विपरीत बुद्धि, । अगर जिन्हें व्यापार भी कायम रखना हो तो हाजी हारून हासन और पण्मुखम् चेटी और अतुल चटर्जीक जरिये कायम रखेंगे या अिसके लिअ गांधीको और पुरुषोत्तमदास तथा बिरलाको पूछनेकी जरूरत होगी?
अिस बार आश्रमको लिखा गया पत्र सदाकी तरह महत्वका था। जिसमें नौकरोंको रखनेकी शर्तो सिर्फ अितनी सूचना है कि वे खादी पहनें, बच्चोंको पढ़नेके २१७