आज बापने बहुत पत्र लिखवाये, अिसलिओ दूरबीनसे देखनेका समय ९-६-३२ नहीं मिला | बापू कहने लगे रोज पाव घण्टा अिसके लिभे रखना चाहिये।" जब परचुरे शास्त्री और रक्तपित्त विभागके दूसरे कैदियोंके लिओ ५० • आम भेजे, तर बापूको सन्तोष हुआ । जमनालालजीकी चिट्ठीमें बहुतसी बातें हैं - अनके स्वास्थ्यकी, खानेपीनेकी और 'बी' वर्ग छोड़नेके कारणों वगरा की । सुनकी निश्चितता आश्चर्यजनक है । अनका शुरूसे ही जो संयमी जीवन या, वह अब तपःपृत हो गया है। फिर तो कहना हो क्या ? वे लिखते हैं कि विनोवाके सायसे जीवनभरका लाभ हुआ है। कितने ही आदमियोंको यह अनुभव मिला होगा । गमकृष्ण परमहंस या स्वामी विवेकानन्द कहते हैं न कि हम अंक भी आदमीको अन्नत बनानेके लिओ जिये हों, तो हमारा जीवन सफल है ।
3 को लिखा - "तुम्हारे लिखे अनुसार तुम्हें बुरे विचार आते ही रहते हैं और अनसे तुम परेशान होते ही रहते हो । भिसीका नाम अपना बनाया हुआ नरक है । भिममें तुम्हारे दोनों सवालोंका जवाब दे दिया है । यह भी कह दिया गया कि मैंने किस परसे लिखा है। यह भी कह दिया गया कि यह नरक कैसा जाना। यह आसानीसे समझमें आ जाना चाहिये कि अिसका ज्ञान हो जाय, तो जिस नरकसे किस तरह निकला जा सकता है। बुरे विचार आयें तो बादमें, अन्हींका सोच नहीं करते रहना चाहिये । मगर यही मानकर आगे बढ़ना चाहिये कि वे आये ही नहीं ! जिन्सान चोट खा जाता है, तो यह देखने नहीं बैठता कि किससे चोट लगी । जो आदमी अिस विचारमें वहीं बैठा रहे कि अिसका परिणाम खराब तो नहीं होगा, वह आदमी आगे नहीं बढ़ सकता। मगर चोट खायी हो तो असकी परवाह न करके आगे ही बढ़ता चला जाय, तो वह खायी हुी चोटको भूल जाता है । आगे बहते रहनेसे शक्ति बढ़ती रहती है। और जैसे जैसे शक्ति बढ़ती जाती है, वैसे वैसे चोट भी कम लगती है।" आज बापू केम्पके कैदी भाभियोंसे और सर्कलमेंसे आनेवालोंसे मिले । अध्यापक जेठालाल गांधी और बिन्दु माधव भी थे। १०-६-३२ डाकखानेके पत्र जला दिये जाते हैं, अिस कार्यक्रम पर बातें हुीं । बापू कहने लगे " यह फजुल और विनाशक कार्य है और जिसमें हिंसा है। यह सफ्रेजेटकी मूर्खता भरी नकल है ।" और बहुतसी चर्चायें की। - २०७