लगता है। परन्तु जहाँ तक औसा मनुष्य कुछ भी सेवा कर सकता है, वहाँ तक असे प्राणत्याग करना अनुचित है। यद्यपि यशमें शारीरिक क्रिया अक बड़ा और आवश्यक अंग है, तदपि अशक्तिके कारण शरीरसे कुछ भी न बन सके तो मानसिक यज्ञ सर्वथा निरर्थक नहीं है। मनुष्य अपने शुद्ध विचारसे भी सेवा कर सकता है । सलाह, अित्यादिसे भी कर सकता है । विशुद्ध चित्तके विचार ही कार्य हैं; और महत् परिणाम पैदा करते हैं ।" पत्र पढ़कर और अस पर लेख लिखवाकर फिर दो चार मिनिट बापू देखते रहे और गहरे विचारमें पड़ गये । और बादमें बोले " परचुरे शास्त्री जैसे आदमीको यह रोग कहाँसे लगा ?" आज लोदियन कमेटीकी रिपोर्टका सार प्रकाशित हो गया । वापू अछूतों सम्बन्धी सिफारिशांका सार सुनकर कहने लगे- “अिस कमेटीका अितना काम तो ठीक ही कहलायेगा कि असने अछूतपनकी व्याख्या दे दी और अब तक जो ७ करोड़ कहलाते थे, अनकी संख्या ३|| करोड़ ठहरा दी । जिसके लिओ शायद लोदियन यश ले सकता है । यह व्याख्या हो जानेसे हिन्दू चाहें तो क्षणभरमें अछूतोंको अपना सकते हैं और अछूतोंके लिओ कही जानेवाली सारी माँगोंको शान्त कर सकते हैं।" अछूतोंके बारेमें व्याख्या करनेका और सुनकी तादाद मुकर्रर करनेका यश लोदियनको नहीं, लेकिन ताँबे और चिन्तामणिको मिलना ४-६-३२ चाहिये, असा दीखता है । अिन लोगोंके विरोधी मतमेंसे अछूतों वाला भाग बापूको पढ़कर सुनाया। बापू कहने लगे- " बढ़िया है । अछूतोंको अलग मताधिकार दे दिया जाय, तो यह अक बदमाशीका काम होगा। मनुष्य स्वार्थी बन जाय, तो समझमें आ सकता है । मगर यहाँ तो आज सारी प्रजाको स्वार्थान्ध बनानेकी कोशिश हो रही है। वीलीअर्सने अंग्रेजों और मुसलमानोंकी अकताकी बातें कहीं थीं; असे हमने विलायतमें देखा था। वैसी ही बात बम्बीमें हुभी सुनते हैं। चटगाँवमें भी यही बात थी।"
66 अिस बार स्त्रियोंके जो पत्र आये, अनमें बहन झुमा कुंदापुरका पत्र बहुत सुन्दर था । १९६ बहनोंका साथ छोड़ कर जाना पड़ता है, अिससे दुःख होता है । अितने प्रान्तोंकी अितनी बहनोंके ये दर्शन मानो हिन्दुस्तानके दर्शन कराते हैं । मिन बहनोंके साथ सुखसे बिताये हुओ दिन हमेशा याद आयेंगे । यहाँ थी तब आपके जो पत्र आते थे वे देखनेको मिलते थे। बाहर नागी तो ये पत्र भी देखनेको न मिलेंगे।"
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