पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१९३

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contaminated, every other remedy is useless. And if its purity is assured, nothing else is needed. भावनाका स्थान हृदयमें है। अगर हम हृदय शुद्ध न रखेंगे, तो भावना हमें गलत रास्ते ले जायगी । यह तो घर और असके भीतरकी सब चीजोंको साफ रखने जैसी बात है। हृदय मूल स्रोत है जहांसे औश्वरके ज्ञानका अद्भव होता है। अगर यह मूल ही बिगड़ जाय, तो सारे अपाय बेकार हो जाते हैं। और जिसके शुद्ध रहनेका यकीन हो तो दूसरे कोी अपाय करनेकी जरूरत नहीं है." दायें हायसे आज भी बहुत पत्र लिखे । और आश्रमके लिओ ३०-५-३२ 'मृत्युसे मिलनेवाला बोध' नामका साप्ताहिक लेख भेजा। पत्र भी काफी लिखाये । की आदत है कि तरह तरहकी खयाली समस्यायें खड़ी करके अनके हल बापूसे निकलवाता है और असके प्रति स्नेह होनेके कारण बापू लम्बे लम्बे जवाब देते हैं । अिस बार असने अिसी तरहके सवाल बलात्कारसे होनेवाले गर्भपात या आत्महत्याके बारेमें पूछे और अन्हे छपवानेको अिजाजत मांगी। और हर हफ्ते अिसी तरहके सवालात मेजनेकी धमकी दी। अिसलि बापूने असे कड़ा जवाब " मेरी राय यह है और डॉक्टरोंका भी यही मानना है कि किसी भी स्त्री पर केवल बलात्कार होना संभव नहीं है। मरनेकी तैयारी न होनेके कारण स्त्री अन्तमें अत्याचारीके वशमें आ जाती है । मगर जिसने मौतका डर बिलकुल छोड़ दिया है, वह बलात्कार हो सकनेके पहले ही मर मिटेगी । यह लिखना आसान है, करना कठिन है; अिसलिझे हमें यह मानना शोभा ही देगा कि जो स्त्री खुशीसे अत्याचार्गके वशमें नहीं हुी, अस पर बलात्कार ही हुआ है। जैसी स्त्रीके गर्भ रह जाय तो वह गर्भपात हरगिज न करे । जिस पर बलात्कार हुआ है, वह किसी भी तरह निन्दाके लायक है ही नहीं। वह तो दयाकी ही पात्र है । जो स्त्री अपने पर हुझे बलात्कारको भी छुपाना चाहती है, असे गर्भपातका या और किस बातका अधिकार है, यह कौन कह सकता है ? भिस तरह भयभीत हुी स्त्री अधिकार न होने पर भी अधिकार मान बैठेगी और जो जीम आयेगा करेगी । बलात्कार हो जानेके बाद स्त्रीको आत्महत्या करनेका बिलकुल अधिकार नहीं है, आत्महन्या करनेकी कोमी नहरत भी नहीं है। "मेरे जो जमाव तुम्हें मिले या मैं दूसरोंको लिम्बू, वे जेलसे लिखे होने के कारण प्रकागित न होने चाहिये । मैं यहाँसे जो अनेक पत्र लिखता हूं, वे प्रकागित होते रहे तो यह बिलकुल गोमाकी बात नहीं है । सरकार शायद अिस तरह पोका प्रकाशित होना बदान कर भी ले, मगर सयाग्रही अिस तरहकी छूट १८४