पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१६३

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. अपने आप 'अ' वर्ग मिला हो, अन दोनकि बीच थोड़ा फर्क तो जबर है। लेकिन वह भेद करनेमें कोमी सार नहीं है। आदर्श तो बेशक यही है कि वर्ग होने ही न चाहियें; और जिनका वर्गीकरण किया गया हो, अन्दै अचे कहलानेवाले वर्गको छोड़ देना चाहिये । जिस आदाको रक्षा जब अभी बहुत ही कम लोग करते है, तय सी लड़की पर जरा भी जोर डालनेकी अिच्छा नहीं होती। वह बहुत विचारवान है । अपने आप जितना संयम रखने की अतकी शक्ति होगी, वह जरूर रखती ही होगी । " मणिलालके लिो मने प्रार्थना की वह शानसूचक नहीं थी, मगर पिताके प्रेमकी सूचक थी। प्रार्थना तो अक यही शोभा देती है - 'मीश्वरको जो ठीक लगे सो करे ।' यह प्रश्न झुट सकता है कि जैसी प्रार्थना करनेका अर्थ क्या ? अिसका जवाब यह है कि प्रार्थनाका त्यूल अर्थ नहीं कग्ना चाहिये । हमारे हृदयमें बसनेवाले औश्वरकी हत्तीके बारेमें हम जाग्रत हैं और मोहसे छूटनेक लिओ घड़ीभर मीश्वरको अपनेते अलग समत कर असले प्रार्थना करते हैं, यानी मन हमें जहाँ खींच ले जाता है वहीं हम जाना नहीं चाहते । मगर ीश्वर हमसे भिन्न हो, तो हमारा स्वामी होनेके कारण वह हमें जहाँ ग्वींच कर ले जायगा वहीं हमें जाना है। हम नहीं जानते कि जीने में भला है या मरनेमें। अिसलिये न तो जी कर खुश हों और न मरनेसे डरें । यह समझकर कि दोनों अकते हैं हम तटस्य रहें । यह आदर्श है । वहाँ तक पहुँचनेमें देर लगती है, या शायद ही कभी पहुँच सकता है। अिसलिमे हम आदर्शको कभी न छोड़ें और ज्यों ज्यों असकी कठिनाभी हमें महसूस होती जाय, त्या त्या हम अपना प्रयत्न बड़ाते जायें। " पूर्णायु, १०० वर्षसे भी ज्यादा हो सकती है । मगर कितने ही वर्ष हों तो भी कालचक्र अनन्त है और असमें मनुष्यके अंक आयुष्यकी गिनती अक विन्दुका करोड़वाँ भाग भी नहीं है। जिसके लिओ मोह क्या या हिसाव क्या ? और हम हिसाब लगायें भी तो वह किसी भी तरह निश्चयात्मक नहीं हो सकता। अनुमानसे अितना कहा जा सकता है कि ज्यादासे ज्यादा अम्र कितनी हो । वैसे तो हम तन्दुरुस्त बच्चोंको भी मरते देखते हैं। यह भी नहीं कहा जा सकता कि विषयी दीर्घायु नहीं हो सकता। अधिकसे अधिक यह कह सकते हैं कि जिनका जीवन शुरूसे ही सादा होगा और विषय- रहित होगा वे ज्यादातर दीर्घजीवी होते हैं। मगर जो आदमी सिर्फ दीवजीवी बननेके लिझे ही विषयों पर का करता है, असके लिझे यही कहा जायगा कि असने चूहेके लिअ पहाड़ खोदनेका काम किया । विषयोंको हमें जीतना है आत्माको पहचाननेके लिअ । विषयोंको जीतनेकी, कोशिशमें शरीर ज्यादा १६०