"क्या " आज 'हिन्दू' के शिमलेके सम्बाददाताने सत्यमूर्तिका गांधीजीके नाम लिखा हुआ पत्र छापा है। बापूको तो अभी तक वह २५-५-२३२ मिला ही नहीं और सुसकी नकल शिमलेके सम्बाददाताको मिल भी गयी ! सत्यमूर्तिको लगता है कि होरके भाषणके जवाबमें गांधीजीको सुलहकी माँग करनी चाहिये । बात कहने लगे- जिसकी समझमें अितना नहीं आता कि वह यह कहता है कि दाँतोंमें तिनका लेकर हमारे पैरों पड़ो? हमारे आदमी झूब गये होंगे। अिधर मेरे जीमें यह है कि मामला जितना लम्बा जाय अतना अच्छा, ताकि जितनी सफाी होनी हो हो जाय और असके बाद ही हम छूटें । वल्लभभाीने बापूको सत्यमूर्तिका लेख पढ़नेके लिअ 'हिन्दू' दिया । बापू कहने लगे ." वल्लभमाी, आप भूलते हैं । आप समझते हैं कि यही सबसे बड़ी खबर है । बड़ी खबर तो 'हिन्दू' में वह भाषण है, जो जोसेफने केरलके सनातनी जीसाअियोंकी परिषदके प्रमुखकी हैसियतसे दिया है । यह कह कर असके दिलचस्प अंश पढ़ कर सुनाये, खास कर सरकारको धर्मके मामलेमें तटस्थताकी नीतिकी आलोचना । सरकारके भड़के हुमे राजपुष्योंने केनिंगके वक्तसे ही श्रीसाी हुकुमतके रूपमें राज करनेका तरीका रखा होता, तो आज ब्रिटेनके भागनेकी नौबत न आती, वगैरा वगैरा । बापने कहा यह आदमी तो पागल ही हो गया है ! कटर ीसाओ तक असा नहीं लिखते ।" हुआ। . - बम्बीमें भयंकर दंगा होनेकी खबर आयी । पढ़कर सबको बड़ा दुःख आनकी डाको ४५ पत्र लिखवाये। लेखके १६-५-३२ लि अरबोंक अद्भुत त्यागकी सर फिलिप सिडनी जैसी अक कहानी पसन्द की । डायरीके बारेमें लिखते हुओ कहते हैं "डायरीमें जितना लिखा जा सके लिखना चाहिये । गुप्त से गुप्त विचार भी लिखे जायें। हमारे पास छिपानेको है ही क्या ? अिसलि भिसकी चिन्ता न करें कि कौन पड़ेगा ? अिसी लिने दुसरेके दोष या असकी खानगी रखनेको कही हुी बातें असमें न लिखी जायँ । असे पढ़नेका अधिकार तो असके मंत्री या असके मुखतारका ही हो सकता है। मगर वह किसीसे छिपा कर रखनेकी चीज नहीं हो सकती । गीता रोज पढ़नेसे नीरस लगती है यह शिकायत करनेवालोंको लिखा " गीताको रोज पढ़ना नीरस अिसलिमे लगता है कि असका मनन नहीं होता । असे यह समझकर पढ़ें कि वह हमें रोज रास्ता बतानेवाली माता
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