कारण आश्रममें दूसरोंके लिझे भी अिस दिशामें आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है । अनकी अिच्छा है, मगर अनके सामने कोी सम्पूर्ण पदार्थपाठ नहीं है । यहाँ विल्लीके दो सुन्दर बच्चे हैं । झुनकी माँ अन्हें नजरसे ओझल नहीं होने देती और माके मूक व्यवहारसे वे अपने पाठ पढ़ते हैं। अिसलिओ आचरण ही मुख्य चीज है । अभी अभी तो मैं कितने ही मामलों में लाचार बनकर हार जाता हूँ । परन्तु जो अनिवार्य है, असपर रंज करना फजूल है।" सरोजिनी देवीने अपनी गिरफ्तारीका हाल देकर लिखा कि अिसका वर्णन ताजमहलमें सोने दिया अिस बातका अपनी लड़कीसे किया, तो लीलाने कहा कि हमें मध्यकालके क्षात्रधर्मकी याद आती है। बापूने कहा : "I do not know that I would share Lilamani's enthusiasm. Chivalry is made of sterner stuff. Chivalrous knight is he who is exquisitely correct in his conduct towards perfect strangers who are in need of help, but who can make no return to him and who are unable even to mutter a few words of thanks. But of these things some other day and under other auspices." “ मैं नहीं जानता कि लीलामणिके अत्साहमें में शामिल हो सकता हूँ। क्षात्रधर्म बहुत जबरदस्त चीज है । सच्चा क्षत्रिय तो वह माना जाता है, जिसका व्यवहार असे अनजान व्यक्तिके प्रति भी बिलकुल शुद्ध रहे, जिसे मददकी जरूरत हो और जो झुमका कुछ भी बदला न दे सकता हो- यहाँ तक कि धन्यवादका अक शब्द भी न कह सके । लेकिन अिस विषयमें फिर कभी और दूसरे ही हालातमें बातें होंगी ।" डाक गलत जगहों पर चली जाती है, पत्र देरसे मिलते हैं। जिस बारेमें डोभीलको लम्बा पत्र लिखा । और काका, प्रभुदास और नरहरिको साथ रखनेके बारेमें भी पत्र लिखा । आज कोजी खास बात लिखने जैसी नहीं है । डाह्याभाजी आये थे बेचारे रोये । बापूने कहा -“मैं नहीं सोचता था कि रोयेंगे । ७-५-३२ बच्चा तो हँसता था । अभी बेचारा अस अम्रको नहीं पहुंचा, जब माँका दुःख महसूस कर सके । मेरी दशा मुझे अभी तक याद आती है ।" मगर डाह्याभाीका ही क्या? वल्लभभाका भी ३० वर्षकी अम्रमें ही घर बिगड़ गया था । अन्होंने तो अपने विधुरपनको चमका दिया । जिस तरह विधुरपनको चमकाना कोभी आसान बात नहीं है ! डाखामाजीकी भगवान सहायता करे! १३८
पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१४३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।