या ज्यादातर अछूतोंकी माँग अलग मताधिकारके लिखे थी । और मैं चाहूंगा कि आप अिसमें यह ज्यादा स्पष्ट करें कि अछूतोंको अलग मताधिकार देकर जनताके शरीर पर भयंकर आघात किया जा रहा है। वैसे बहुतसे भीमानदार अंग्रेज भी अिसे समझ नहीं सकेंगे।" बापू बोले ---- " अिससे ज्यादा सफामी देने बैठेंगे, तो यह बयान करना चाहिये कि मुसलमानोंका अिस काममें क्या हिस्सा रहा । अिससे मुसलमानोंके साथ पैर बढेगा । यह तो असा ही हुआ जैसा शुस २१ दिनवाले अपवासके समय हुआ था और मुहम्मदअलीने कितने ही वाक्य निकलवा दिये थे ।" मैंने कहा कुछ लोग कहेंगे कि हिन्दू समाजने जो पाप किया है अससे भी यह पाप भयंकर कहलायेगा कि शुनके खिलाफ आपको अनशन करना पड़ा ?" वापू बोले- "हम तो हिन्दू समाजसे सुसका पाप धुलवा रहे थे। यह कृत्य तो अस पापको स्थायी बनाने जैसा है या असे न धोने देनेके बराबर है। देश गृहयुद्ध करानेके सिवा जिसका और कोी नतीजा हो ही नहीं सकता, --- युद्ध सवर्ण हिन्दू और अछूतों तथा हिन्दू और मुसलमानों के बीच होगा।" वल्लभभाओने कहा " मेरी तरफसे तो अब भी अिनकार है, मगर अब आपको जैसा ठीक लगे वैसा कीजिये ।" बापू पत्रको सुधारने बैठ गये, और सुधारकर सो गये । रातको बारह ओक बजे तक मुझे नींद ही नहीं आयी । पौनेचार बजे प्रार्थनाके लिझे जागे । मुंह हाथ धोकर प्रार्थनाके लिअ ठे, तो बापूने प्रार्थनाका क्रम सुनाया "वल्लभभाीसे श्लोक बुलवाते हैं। अिन्हें संस्कृतका ज्ञान जरा भी न होनेके कारण अचारण बहुत अशुद्ध होते थे। अिसलि मेने विचार किया कि अिन अच्चारणोंको सुधारनेका अिसके सिवा दूसरा रास्ता नहीं । तुम देखोगे कि बहुत फर्क पड़ गया है। भजन मैं बोलता था। जवानी तो कुछ या ही नहीं, भिसलि) हम तो अकके बाद अक भजन लेकर पढ़ने लगे। आज मराठी शुरू करनेवाले थे। अब तुम रामधुन और भजन चलाओ ।" मैंने बाधसे ही रामधुन चलानेको कहा । यह बात रातको हुी थी। मैंने पहला भजन प्रभु मोरे अवगुण चित न घरो" गाया। जिसके सिवा में और क्या गा सकता था ? सुवह प्रार्थनाके बाद सोनेकी कोशिश की, मगर न सो सका । सुबह चाय पीनेका मैंने तो हाँ कहा था। वल्लभभाभीसे पूछा कि क्यों, आपने चाय पीना बन्द कर दिया तो वे बोले ---- "यहाँ बापूके साथ अब क्या चाय पियें ? मैंने तो तय कर लिया है कि वे जो खायें सो खाना। चावल छोड़ दिया, और साग अबालनेका निश्चय किया और दो बार दूध रोटी खानेका । बापू भी रोटी खाते हैं ।" चायके विना न .
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