पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१३८

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मालवीयजी गये। मेजरने अिसका स्पष्टीकरण अच्छा किया। कहने लगा कि जब तक हुक्म न तोड़े, तब तक कानून भंग नहीं कहा जाता । हुक्म तोड़नेसे पहले अन्हें पकड़ लिया था, अब छोड़ दिया है । वल्लभभाीने कल और आज कुल मिलाकर चार पाँच दफे मुझसे और वापूसे कहा होगा "तो मालवीयजी छूट गये !" असी कोी खबर आती है, तो अस पर विचार करनेका वल्लभभाभीका यही दंग है । आज सारे दिन अन्होंने जिस पर विचार किया होगा। सोते वक्त भी बोले "तो मालवीयजीको आठ दिनमें ही छोड़ दिया !" आज आश्रमकी जो डाक आयी, असमें प्रेमा बहनके पत्रमें काफी विद्रोह और दुःख या । बाप्पू बोले " अिस लड़कीने बहुतसी बातें सोचने लायक पछी हैं।" आज सवेरे रामदासको अिस प्रकार पत्र लिखा : “चि० रामदास, कल नारणदासका पत्र मिला । अससे मालूम होता है कि निमु आश्रममें आ गयी है । ४-५-३२ " मुझे डर है कि पिछली बार मुझे जो कहना था, वह मैं न समझा सका होयूँ । मेरी शुरूसे ही यह राय रही है कि सत्याग्रही भोजनके लिभे कहीं भी झगड़े में न पड़े और जो मिले असे मीश्वरकी देन मान कर खा ले। कैदीके शरीरका अफसर दारोगा है। अिसलिओ जब तक खुराक अिजतके साथ मिले, गन्दी न हो और अखाद्य न हो, तब तक असे ले लिया जाय; और पचनेवाली मालूम हो तो खा, ले, नहीं तो फेंक दे । जुठी न की हो तो वापस दे दे । जिस जमानेमें कैदियोंकी खुराक चुननेमें थोड़े बहुत आरोग्यशास्त्रके नियम पाले जाते हैं। लेकिन सिर्फ पानी और रोटी ही दें तो क्या हो ? "कर्मचारियों के साथ असे मामलोंमें विवेकपूर्ण चर्चा की जा सकती है, लड़ाभी नहीं की जा सकती। " धींगामस्ती करके बहुतसी चीजें मिल सकती हैं, मिल सकी हैं; मगर यह अपने लिभे त्याज्य है। " अिसलि मैं मानता हूँ कि भाजीके बारेमें बिलकुल झगड़ा नहीं होना चाहिये । जिसे अच्छी लगे वह खाय, न लगे वह छोड़ दे । रोटी दाल मिल जाय, तो भी अीश्वरकी कृपा माननी चाहिये।" सुपरिटेण्डेण्ट साहबने आज कैम्प जेलमें बम्बीके कितने ही सत्याग्रही कैदियों द्वारा की गयी धींगामस्तीका जिक्र किया । अक आदमीने दूसरेके सिर १३३ "