. - है । जहाँ असी वस्तुस्थिति है, वहाँ पैगम्बर साहबकी मिसाल दे, तो अिसमें आश्चर्य नहीं होता । प्रेमाबहनके पत्रमें यह लिखा "तू पूछती है कि मैं कब आगा ? अगर आँखें काममें ले, तो तू मुझे वहाँ देखे बिना नहीं रह सकती । मेरी आत्मा तो वहीं बसी हुअी है। शरीर भले ही यहाँ हो या राखमें मिल जाय । यह बिलकुल संभव है कि शरीर वहाँ हो, तो भी मैं वहाँ न हो । अिस सत्यको तू देख और अस मायाको भूल जा ।" आज बहनोंके पत्रोंकी नी किश्त आयी । महाराष्ट्री बहनें कितने अच्छे पत्र लिखती हैं ! बापू कहने लगे " संस्कृतिकी छाप साफ तौर पर पड़ती है।" अक महिला अपने लड़के और पतिके लिओ दर्शन चाहती है। दूसरी कहती है कि जैसी श्रद्धा रखनी चाहिये कि आपका पत्र आया है, तो दर्शन भी होंगे ही। मजिस्ट्रेटकी लड़की तो जेलमें है ही। मगर साथमें की माँ भी हैं । यह कैसी बलिहारी है ! . . 6 सेम्युअल होरके भाषणके शब्द बापूको फिरसे सुनाने पर बापू बोले - " अिसकी बात मुझे अच्छी लगती है । अिसे अक भी ३-५-२३२ बीच बिचाव करनेवालेकी गरज नहीं है, क्योंकि अिसका कोभी विश्वस्त आदमी नहीं है। जैसोंके साथ लड़ने में मजा आता है। असे आदमीके हाथसे ही भला होगा। सेकीसे यह आदमी हजार गुना अच्छा है । वह तो सोचे कुछ और कहे कुछ । यह आदमी जो सोचता है, वही कहता है। अक बार मैंने अससे पूछा- 'आप यह मानते हैं न कि यहाँ जो अितने सारे आदमी हैं, अनमेंसे किसीकी शक्ति पर भी आपका विश्वास नहीं है ?' वह बोला अगर सच्चे दिलसे कहा जाय तो मुझे कहना चाहिये कि यह बात सच है, मुझे विश्वास नहीं है ।' मैंने अिसी बात पर असे बधाश्री दी थी कि मुझे आपकी श्रीमानदारी बहुत पसन्द है ।" आज पर्सी बार्टलेटको पत्र लिखा । असमें बापूने बताया कि “शान्ति और सुलहके लिओ कविकी अिच्छासे मैं सहमत हूँ। और असमें रुकावट हो असा कोी भी कदम नहीं झुठागा । वह सफल हो औसा अक भी कदम देशके स्वाभिमानकी रक्षाकी शर्तके साथ झुठानेमें चूकूँगा नहीं।" नारणदासभाभी लिखते हैं कि हरिलालभाीके नाम लिखा हुआ बापूका पत्र आश्रमकी डाकसे पहले डाला होनेके बावजूद वहाँ नहीं मिला । अिस वक्त तो कितने ही पत्र गलत जगहों पर चले जाते हैं और पुलिसके यहाँ जाकर पड़े रहते हैं। १३२
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