बापू रोज अपनी कताीका परिणाम जाहिर करते हैं । आज चार पूनियोंसे १०० और दूसरी पाँचसे १०२, कुल २०२ तार काते । कुकड़ी सुन्दरऔर सस्त थी । बापूको विश्वास है कि आगे चलकर वायें हाथ पर जोर पड़ना तो कम होगा ही। आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय वाले 'आत्मकथा' के संक्षिप्त संस्करणके लिये लिखा हुआ अपोद्घात बापूको देखनेके लिअ दिया । ३०-४-३२ पहले ही वाक्य पर अटक गये । अनुवाद भले मुश्किल हो, लेकिन अससे संक्षेप क्यों मुश्किल हो ? यह समझमें आ सकता है कि मूल ही संक्षेप हो, तो असे संक्षित करना मुश्किल हो । मगर अनुवाद मुश्किल था, अिसलिओ संक्षेप भी मुश्किल हो, यह नहीं हो सकता । जिस हालतमें तो झुल्टे, अनुवादकको संक्षेप करना आसान पहना चाहिये। बाकीका भाग विद्यार्थियोंके संस्करणमें नहीं चल सकता । यह तो तब चले जब पुस्तकका अवलोकन करते हों या आलोचना करते हों। वैसे, अिसे तो सिर्फ संक्षेप करनेके ढंगके बारेमें दो शब्द लिखकर पूरा कर देना चाहिये । अन्होंने ८०० शब्दोंका अपोद्घात लिखनेको कहा है । अिसलिमे हमें असका असा झुपयोग नहीं करना चाहिये । हम तो जहाँ ६०० शन्द लिखने हों वहाँ २०० ही लिखकर दें, तभी हमारी मर्यादाकी कदर हो।" मैंने अपोद्घात सुधारा और फिर पेश किया, तो वापूने पास कर दिया । मेजरने असा कहा कि यह अिन्सपेक्टर जनरलके पास भेज दिया जायगा और वह वहींसे बाला बाला आगे भेज देगा। लॉर्ड अर्विनका टॉरण्टोका भाषण आया । वल्लभभाओ कहने लगे- " देखिये आपके मित्रको!" बापू बोले " जरूर मैं असे मित्र मानता हूँ। सुसका सारा भाषण देखे विना राय नहीं दूंगा।" लॉर्ड संकीका 'न्यूज लेटर' अखबारमें छपा हुआ सारा लेख आज यहाँके अखबारमें देखा । अिससे बापू बहुत दुःखी हुआ । १-५-३२ असमें बापूके बारेमें लिखा भाग पड़कर बाप्प बोले " विपर्यास भरा लेख है । अिसे खत लिखना चाहिये । मेरी अिसके बारेकी राय सच साबित हो रही है ।" पत्र लिखवाया। वल्लभभाी सुन रहे थे । पूरा होने पर बोले - " अितना लिख रहे हैं, अिसके बजाय यह लिखिये न कि तू सरासर झुठा है।" बापू खिलखिलाकर हँस पड़े । बापू बोले - " नहीं, अिससे ज्यादा सख्त मैंने कहा है । मैं तो कहता हूँ कि असका बर्ताव असा है, जो सजनोंको शोभा नहीं देता । अिससे आगे बढ़कर मैं कहता हूँ कि तु द्रोही है, तुने मित्र या १२९ म-९
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