. प्रति 'अ'के जैसा न रह सके, तो 'क'के लिअ आश्रममें 'ब'को न छूना ही धर्म है । और जिस धर्मका पालन जहाँ जहाँ मुझे मालूम हुआ है, वहाँ वहाँ करानेकी मैंने कोशिश की है। कुतींकी बात भूल जाने लायक है । अिसे महत्व देनेकी जरूरत नहीं है। तुम 'कल्याणकृत् ' हो, अिसलिमे आखिरकार सब ठीक ही होकर रहेगा । बुद्धिका झुपयोग तो होता, ही रहेगा । बुद्धिको संध डालनेकी जरा भी जरूरत नहीं है । मुले करते करते सच्चे प्रयोग भी होंगे । और जैसी तो कोभी बात है ही नहीं कि बुद्धिके जितने प्रयोग करते हो, वे सभी गलत निकलते हैं । सोमें पाँच प्रयोग गलत साबित हुआ हों, तो उससे क्या हुआ ? हमें भूलें करनेका अधिकार है । जहाँ भूल होगी, वहाँले फिर गिनेंगे और आगे - बढ़ेंगे। " लन्दनमें किस मोके पर मैं बोला था, यह तो मुझे याद नहीं है । मगर जो व्रत पालन करता है, वह स्त्री समाजकी व्यादा सेवा कर सकता है, यह वाक्य तो सच है ही। और जिस हद तक मे असमें सफल हुआ होगा, अस हद तक सेवा ज्यादा हुी ही होगी, यह बात निःसन्देह माननी चाहिये ।" 'क' वर्गवालोंको नोटबुके वगैरा देनेके बारे में बात करते हुओ बापूने कहा ." मैं तो सबको हूँ। फिर यह देखें कि कौन सुसका दुरुपयोग करता है.। मगर पहले यह तय करनेका विचार करूँ कि सदुपयोग कोन करेगा। विलायतमें महादेव और देवदास वहाँकी जेल देख आये थे। ये कहते थे कि वहाँ कैदियोंको कितनी ही मामूली सुविधायें असी मिलती हैं, जो यहाँ नहीं मिलती। बात यह है कि हम यह भूल जाते हैं कि हम और ये कैदी अकसे हैं । मेरे सामने क्वीन कहता था कि अिन लोगोंमें और हममें फ़र्क अितना ही है कि ये पकड़े गये हैं और हम नहीं पकड़े गये । खूनी खुन कर डालता है और हम कितनों ही के खुन मन ही मन करना चाहते होंगे, मगर, डर या किसी भी भावनाके कारण खुन नहीं करते, यही फ़र्क है।" सुपरिटेण्डेण्ट साहब अिस बातका मर्म नहीं समझ सके । अन्होंने कहा "मेरे सामने बबीनने असी बात कभी नहीं कही । आपके आगे कही होगी, तो भावावेशमें आकर कही होगी ।" जिस आदमीको औसा लगा कि जिस बातको कबूल करनेमें कुछ छोटापन आ जाता है ! तीव्र बुद्धिकी जितनी कमी अिस आदमीमें देखी, अतनी और किसीमें नहीं । १०९
पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/११२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।