पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१०४

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पुनश्च : अगर श्री जिस पत्रमें दी हुी मेरी सलाह मान लें और अपना अपवास छोड़ दें, तो मैं आशा रखता हूँ कि आप अन्हें अक-दो दिन दूध दे देंगे। अपवासके विशेषज्ञ होनेके नाते मेरा यह अनुभव है कि ठोस खुराक लेकर अपवास छोड़नेसे शरीरको बड़ा नुकसान पहुँचता है । मो० क. गांधी सुपरिष्टेण्डेण्ट मिलने आये तब बापूने अनसे कहा "अिस पत्रसे. न मानें, तो आपको महादेवको अनसे मिलने जाने देना पड़ेगा ।" तीनेक बजे तक कोमी न आया, तो मुझे लगा कि शायद मान गया होगा | मगर ३|| बजे कटेली आया और मुझे ले गया। मुझे असे दोक घण्टे समझाना पड़ा। ." बापूको खादीके मामले में मुझे कहनेका अधिकार है, अिसलिओ वैसा ही मान हँगा। परंतु अिस मामलेमें नहीं मानूंगा, क्योंकि मेरी यह स्थिति बापूसे स्वतंत्र है । संन्यासधर्म सब जगह पालनेकी छूट होनी चाहिये । और हमें पकड़े तो सरकारको संन्यास धर्म भी पालने देना चाहिये", वगैरा वार्ते असने कहीं । सारी वातचीत यहाँ आकर अटकी कि मधुकरी माँगनेकी मेरी हिम्मत नहीं होती, अिस लिओ मुझे फलाहार करना पड़ता है। मिष्टान्न छोड़नेके लिअ मधुकरीका व्रत लिया और मधुकरी मांगनेकी हिम्मत न हुी, अिसलिभे अिसमें फलाहार रखा। "अिसलि तुमने समाधान कर लिया। असी तरह यहाँ भी हम देते हैं वह मधुकरी लो अिसे भले ही तुम समाधान कह लो । दुनिया में सत्याग्रहकी हँसी होगी और बापूको तुम्हारे दुराग्रहसे आघात पहुंचेगा। कुछ भी हो, बापू जैसे अनुभवी सत्याग्रहीकी निःस्वार्थ सलाह है कि तुम्हारी यह भूल है, तो तुम्हें अनकी आज्ञा मान लेनी चाहिये ।" आखिर असने मान लिया । मैं शहद, नीबू और पानी लेकर गया और पिला आया । लगोट ही पहन रखा या असके बदले कपड़े पहने । और बाके शब्दोंमें -". ने आखिर लाज रख ली । तुम गये और असने न माना होता, तो बहुत बुरा लगता । अिन लोगोंके सामने हमारी प्रतिष्ठा चली जाती । अब प्रतिष्ठा रह गयी । जिस व्यापारी प्रतीककी पहेलो' पर बापू, वल्लभभाभी और मैंने बुद्धि और समय खर्च किया था, असमें हमारे नाम अक भी अिनाम नहीं आया । वल्लभभाभी हँसते हँसते कहने लगे. "अभागे समझे गये और साथ ही बेवकूफ बने । पूंछोंकी जैसी ही पहेलीके लिअ जो मेहनत कर रहे थे, असके बारेमें बापू कहने लगे "अिसमें अकेली बुद्धिका काम नहीं है । बहुत कुछ किस्मतका खेल है । अॅसी किस्मत पर अपनेसे न रुपया खर्चा जा सकता है, न वक्त ।" मैंने कहा - 1 .