" . अराजनीतिक साथियोंसे मुलाकातके बारेमें आज मार्टिनको पत्र लिखा। सुपरिटेण्डेण्टके साथ बातचीत करते हुझे अिस्लामकी चर्चा चली । बापने कहा " अिस्लाममें जो अदारता थी, जो सहिष्णुता थी, वह हनफीवालोंने धो डाली । कुरानकी और सब प्रतियाँ नष्ट करके अकः ही रखी । फिर भी अिन लोगोंको अभिमान है कि कुरान ही अक औसी पुस्तक है, जिसमें पाठभेद बिलकुल नहीं है। और सब प्रतियाँ नष्ट कर दी जाये, तो पाठभेद रहे ही कहाँ ? मगर अिस्लाममें जो अदारता हजरत अमरकी है, असकी मिसाल तो दुनिया में कहीं कहीं मिल सकती है। और अससे बड़कर मिसाल तो कहीं मिल ही नहीं सकती । और असहिष्णुता होने पर भी ीसामी धर्मके नाम पर जो मारकाट हुी है और जितना खून बहा है, अतना अिस्लामके नाम पर हरगिज नहीं बहा । वस, अब तो बापूने रोज ५०० वार कातनेका निश्चय किया दीखता. है। आज काफी जोर पड़ा मुलाकातोंमें काफी समय गया । १४-४-३२ कैम्पसे मोहनलाल भट, धुरंधर और मणिभाी देसाजी आये थे और राजकोटसे बबीबहन, मनु, कुमुम देसाजी वगैरा आयी थीं। मगर ज्यादा वक्त के साथ लगा । सुपरिष्टेण्डेण्टसे बातचीत करते समय अन्होंने समाचार दिया कि छह दिनसे अपवास कर रहे हैं । क्या आप समझा सकेंगे ? बापूने कहा : “जरूर, आप बुलवाअिये । बुलवाया । लँगोट पहनकर दफ्तरमें आये । अनसे पूछने पर अन्होंने स्पष्टीकरण किया ." मेरा तो स्वावलम्बनका व्रत है, अिसलिओ हाथका कता कपड़ा ही पहनना चाहिये और मधुकरीका अन्न खानेका या वह न हो सके तो फलाहार और दूध पर हो रहनेका व्रत है ।" सुपरिण्टेण्डेण्टने कहा "ये व्रत नासिकमें नहीं थे ?" वे कहने लगे ." संधिके बाद ये व्रत लिये हैं ।" बापूने खुब समझाया और कहा स्वावलम्बनका यही अर्थ नहीं होता । तुम्हे पैसे देने पड़ते हों तो दूसरी बात है । यहाँ तो जेल जो दे वही पहनना झुचित है । और खानेको अमुक चीजें ही मिलें, यह आग्रह कैसे रखा जा सकता है ? मधुकरी या फलाहारके व्रतका तो कोशी अर्थ मैं करता ही नहीं । क्या दूध खुराक नहीं है ! फल खुराक नहीं है ? मैं तो अिसे विलास मानता हूँ । और अिस तरह तो तुम्हारे-जैसे सभी व्रत लेकर आ सकते हैं और 'सी' क्लासकी खुराकसे बच सकते हैं । यह अपवास मुझे निरर्थक मालूम होता • ने दूसरा तर्क किया : " हिन्दू धर्ममें व्रत हैं। अनके लिओ मरनेको शक्ति हमने पैदा नहीं की । अिसलिये जहाँ तहाँ हिन्दू धर्मकी निन्दा होती है । देखिये, मेरा सिर मुंडवा दिया, परन्तु मुसलमानकी दाढ़ी यहाँ ९५
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