पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/८७

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कुछ उपदेश मुझे भी कीजिये। संभवतः उसने सादी से अपनी प्रशंसा करानी चाही होगी। लेकिन सादी ने बड़ी निर्भयता से यह उपदेश-पूर्ण शेर पढ़े:

शहे कि पासे रऐयत निगाह मीदारद,
हलाल बाद ख़िराजश कि मुदे चौपानीस्त।
वगर न राइये ख़ल्क़स्त ज़हरमारश वाद,
कि हरचे मीखुरद अज़ जज़ियए मुसलमानीस्त।

भावार्थ—वह बादशाह जो प्रजापालन का ध्यान रखता है एक चरवाहे के समान है। यह प्रजा से जो कर लेता है वह उसकी मज़दूरी है। और यदि वह ऐसा नहीं करता तो वह हराम का धन खाता है।

अबाक़ाखां यह उपदेश सुन कर चकित हो गया। सादी की निर्भयता ने उसे भी सादी का भक्त बना दिया। उसने सादी को बड़े सम्मान के साथ विदा किया।

सादी में आत्मगौरव की मात्रा भी कम न थी। वह आन पर जान देने वाले मनुष्यों में थे। नीचता से उन्हें घृणा थी। एक बार इस्कनदरिया में बड़ा अकाल पड़ा। लोग इधर उधर भागने लगे। वहां एक बड़ा सम्पत्तिशाली ख़ोजा था। वह ग़रीबों को खाना खिलाता और अभ्यागतों की अच्छी सेवा सम्मान करता। सादी भी वहीं थे। लोगों ने कहा आप भी