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इस वाक्य की उपेक्षा चाहे की जाय, और आदर्श के उपासक चाहे इसे निन्द्य समझें, पर कोई सहृदय मनुष्य उसकी उपेक्षा न करेगा। इसके साथ ही सादी ने आगे चल कर एक और वाक्य लिखा है जिससे विदित होता है कि वह स्वार्थ के लिए किसी हालत में भी झूठ बोलना उचित नहीं समझते थे:
गर रास्त सुख़न गोई ब दर बन्द बेमानी,
वह जांकि दरोगत देहद अज वन्द रिहाई।
यदि सच बोलने से तुम क़ैद हो जाओ तो यह उस झूठ से अच्छा है जो क़ैद से मुक्त कर दे। इससे यह जान पड़ता है कि पहला वाक्य केवल दूसरों की विपत्ति के पक्ष में है, अपने लिए नहीं।