पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/७९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(७६)

दुर्जनों के साथ भलाई करना सज्जनों के साथ बुराई करने के समान है।


यके नुक़सान माया दीगर शुमातत हमसाया।
गांठ से धन जाय लोग हंसे।


ख़ताये बुजुर्गां गिरफ़्तन ख़तास्त।
बड़ों की निन्दा करना भूल है।


ख़रे ईसा अगर वमक्का रवद,
चूं बयायद हनोज़ ख़र बाशद।

कौवा कभी हंस नहीं हो सकता।


जौरे उस्ताद बेह ज़मेहरे पिदर।
गुरु की ताड़ना पिता के प्यार से अच्छी है।


करीमांरा बदस्त अन्दर दिरम नेस्त,
ख़ुदावन्देन्यामतरा करम नेस्त।