पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/६९

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लौटा तो उसके नेत्रों से आंसू बह रहे थे। स्वामीने पूछा, क्यों रोता है? बोला, इस साधु को देख कर मुझे बड़ा दुःख हुआ। किसी समय मैं उसका सेवक था। उसके पास धन, धरती सब था। आज उसकी यह दशा है कि भीख मांगता फिरता है। स्वामी सुन कर हंसा और कहा बेटा, संसार का यही रहस्य है। मैं भी वही दीन मनुष्य हूँ जिसे इसने तुझ से धक्के देकर बाहर निकलवा दिया था।

(११) याद नहीं आता कि मुझ से किस ने यह कथा कही थी कि किसी समय यमन में एक बड़ा दानी राजा था। वह धन को तृणवत समझता था। जैसे मेघ से जल की वर्षा होती है उसी तरह उसके हाथों से धन की वर्षा होती थी। हातिम का नाम भी कोई उसके सामने लेता तो चिढ़ जाता। कहा करता कि उसके पास न राज्य है न ख़ज़ाना, उसकी और मेरी क्या बराबरी? एक बार उसने किसी आनन्दोत्सव में बहुत से मनुष्यों को निमन्त्रण किया। बात चीत में प्रसंगवश हातिम की भी चर्चा आ गई और दो चार मनुष्य उसकी प्रशंसा करने लगे। राजा के हृदय में ज्वाला सी दहक उठी। तुरंत एक आदमी को आज्ञा दी कि हातिम का सिर काट ला। वह आदमी हातिम की खोज में निकला। कई दिन के बाद रास्ते में उसकी एक युवक से भेंट हुई। वह गुण और शील में निपुण था। घातक को अपने