पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/६३

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इस भय से कि यह कोई शत्रु न हो तुरंत धनुष चढ़ाया। चरवाहे ने चिल्ला कर कहा "हे महाराज, मैं आपका वैरी नहीं हूं। मुझे मारने का विचार मत कीजिये। मैं आपके घोड़ों को इसी चरागाह में चराने लाया करताहूं।" तब बादशाह को धीरज हुआ। बोला "तू बड़ा भाग्यवान था कि आज मरते मरते बच गया"। चरवाहा हंस कर बोला "महाराज, यह बड़े खेद की बात है कि राजा अपने मित्रों और शत्रुओं को न पहचान सके। मैं हज़ारों बार आपके सामने गया हूं। आपने घोड़े के सम्बन्ध में मुझ से बातें की हैं। आज आप मुझे ऐसा भूल गये। मैं तो अपने घोड़ों को लाखों घोड़ों में पहचान सकता हूं। आपको आदमियों की पहचान होना चाहिए।"

(३) बादशाह "उमर" के पास एक ऐसी बहुमूल्य अंगूठी थी कि बड़े बड़े जौहरी दंग रह जाते। उसका नगीना रात को तारे की तरह चमकता था। संयोग से एक बार देश में अकाल पड़ा। बादशाह ने अंगूठी बेच दी और उससे एक सप्ताह तक अपनी भूखी प्रजा का उदर पालन किया। बेचने के पहले बादशाह के शुभचिन्तकों ने उसे बहुत समझाया कि ऐसी अपूर्व अंगूठी मत बेचिये, फिर न मिलेगी। उमर ने न माना। बोला "जिस राजा की प्रजा दुःख में हो उसे यह अंगूठी शोभा नहीं देती। रत्नजटित आभूषणों