पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/६२

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"सालेह" था कभी कभी अपने एक गुलाम के साथ भेष बदल कर बाज़ारों में निकला करता था। एक बार उसे एक मस्जिद में दो फ़क़ीर मिले। उन में से एक दूसरे से कहता कि अगर यह बादशाह लोग जो भोग-विलास में जीवन व्यतीत करते हैं स्वर्ग में आवेंगे तो मैं उनकी तरफ़ आंख उठाकर भी न देखूंगा। स्वर्ग पर हमारा अधिकार है क्योंकि हम इस लोक में दुःख भोग रहे हैं। अगर सालेह वहां बाग़ की दीवार के पास भी आया तो जूते से उसका भेजा निकाल लूंगा। सालेह यह बात सुन कर वहां से चला आया। प्रातःकाल उसने दोनों फ़क़ीरों को बुलाया और यथोचित आदर सत्कार करके उच्चासन पर बैठाया। उन्हें बहुत सा धन दिया। तब उन में से एक फ़कीर ने कहा हे बादशाह, तू हमारी किस बात से ऐसा प्रसन्न हुआ? बादशाह हर्ष से गद्‌गद् होकर बोला मैं वह मनुष्य नहीं हूं कि ऐश्वर्य के अभिमान में दुर्बलों को भूल जाऊं। तुम मेरी ओर से अपना हृदय साफ़ कर लो और स्वर्ग में मुझे ठोकर मारने का विचार मत करो। मैंने आज तुम्हारा सत्कार किया है, तुम कल मेरे सामने स्वर्ग का द्वार न बन्द करना।

(२) सुना है कि ईरान देश का बादशाह दारा एक दिन शिकार खेलने गया और अपने साथियों से छूट गया। कहीं खड़ा इधर उधर ताक रहा था कि एक चरवाहा दौड़ता हुआ उसके सामने आया। बादशाह ने