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से विदित होता है कि सादी की नीतिशिक्षा कितनी विस्तीर्ण है— प्रथम अध्याय द्वितीय ,
प्रथम अध्याय | … | … | … | … | न्याय और राजनीति |
द्वितीय „ | … | … | … | … | दया |
तृतीय „ | … | … | … | … | प्रेम |
चतुर्थ „ | … | … | … | … | विनय |
पञ्चम „ | … | … | … | … | धैर्य्य |
षष्ठ „ | … | … | … | … | सन्तोष |
सप्तम „ | … | … | … | … | शिक्षा |
अष्टम „ | … | … | … | … | कृतज्ञता |
नवम „ | … | … | … | … | प्रायश्चित्त |
दशम „ | … | … | … | … | ईश्वर प्रार्थना |
नीतिग्रन्थों की आवश्यकता यों तो जन्म भर रहती है लेकिन पढ़ने का सब से उपयुक्त समय बाल्यावस्था है। उस समय उनके मानवचरित्र का आरंभ होता है। इसी लिए पाठ्यपुस्तकों में बोस्तां का इतना प्रचार है। संसार की कई प्रसिद्ध भाषाओं में इसके अनुवाद हो चुके हैं। सर्वसाधारण में इस के जितने शेर लोकोक्ति के रूप में प्रचलित हैं उतने गुलिस्तां के नहीं। यहां हम उदाहरण की भांति दो चार कथायें देकर ही सन्तोष करेंगे—
(१) सीरिया देश के एक बादशाह जिसका नाम