पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/४५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४०)


एक फ़कीर को कोई काम आ पड़ा। लोगों ने कहा अमुक पुरुष बड़ा दयाल है। यदि उससे जा कर अपनी आवश्यकता कहो तो वह तुम्हें कदापि निराश न करेगा। फ़क़ीर पूछते पूछते उस पुरुष के घर पहुंचा। देखा तो वह रोनी सूरत बनाये, क्रोध में भरा बैठा है। उल्टे पाँव लौट आया। लोगों ने पूछा क्यों भाई क्या हुआ? बोले सूरत ही देखकर मन भर गया। यदि माँगना ही पड़े तो किसी प्रसन्न चित्त आदमी से मांगो, मनहूस आदमी से न मागना ही अच्छा है। सूरत ही निराशा-जनक न हो।


लोगों ने [१]*हातिमताई से पूछा, क्या तुमने संसार में कोई अपने से अधिक प्रतिभाशाली मनुष्य देखा वा सुना है? बोला, हां एक दिन मैंने लोगों की बड़ी भारी दावत की। संयोग से उस दिन किसी कार्यवश मुझे जंगल की तरफ जाना पड़ा। एक लकड़हारे को देखा बोझ लिये आ रहा है। उससे पूछा, भाई, हातिम के महमान क्यों नहीं बन जाते? आज देश भर के आदमी उसके अतिथि हैं। बोला जो अपनी मेहनत की रोटी खाता है वह हातिम के सामने हाथ क्यों फैलावे?



  1. *उदारता में अरब का हरिश्चन्द्र है।