पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/३०

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मिला। युवराज बड़ा पितृभक्त था। यह ख़बर सुनते ही वह शोक से बीमार पड़ गया और रास्ते ही में परलोक को सिधार गया। इन दोनों मृत्युओं से सादी को इतना शोक हुआ कि वह शीराज़ से फिर निकल खड़े हुए और बहुत दिनों तक देशभ्रमण करते रहे। मालूम होता है कि कुछ काल के उपरान्त वह फिर शीराज़ आ गये थे, क्योंकि उनका देहान्त यहीं हुआ। उनकी क़ब्र अभी तक मौजूद है, लोग उसकी पूजा (ज़ियारत) करने जाया करते हैं। लेकिन उनकी सन्तानों का कुछ हाल नहीं मिलता है। सम्भवतः सादी की मृत्यु १२८८ ई॰ के लगभग हुई। उस समय उनकी अवस्था ११६ वर्ष की थी। शायद ही किसी साहित्यसेवी ने इतनी बड़ी उम्र पाई हो।

सादी के प्रेमियों में अलाउद्दीन नाम का एक बड़ा उदार व्यक्ति था। जिन दिनों युवराज फ़ख़रुद्दीन की मृत्यु के पीछे सादी बुग़दाद आये तो अलाउद्दीन वहाँ के सुल्तान अवाक़ा ख़ाँ का वज़ीर था। एक दिन मार्ग में सादी से उसकी भेंट हो गई। उसने बड़ा आदरसत्कार किया। उस समय से अन्त तक वह बड़ी भक्ति से सादी की सेवा करता रहा। उसके दियेहुए धन से सादी अपने व्यय के लिए थोड़ा सा लेकर शेष दीनों को दान कर दिया करते थे। एक बार ऐसा हुआ कि अलाउद्दीन ने अपने एक गु़लाम के हाथ सादी के पास ५०० दीनार भेजे। ग़ुलाम जानता था कि शेख़साहब कभी