किनारे रहते। इसका कदाचित् एक कारण यह भी था कि अताबक अबूबक्र को मुल्लाओं और विद्वानों से कुछ चिढ़ थी। वह उन्हें पाखण्डी और उपद्रवी समझता था। कितने ही सर्वमान्य विद्वानों को उसने देश से निकाल दिया था। इसके विपरीत वह मूर्ख फ़क़ीरों की बहुत सेवा और सत्कार करता। जितना ही अपढ़ फ़क़ीर होता उतना ही उसका मान अधिक करता था। सादी विद्वान भी थे, मुल्ला भी थे, यदि वह प्रजा से मिलते-जुलते तो उनका गौरव अवश्य बढ़ता और बादशाह को उनसे खटका होजाता। इसके सिवा यदि वह राजदरबार के उपासक बनजाते तो विद्वान लोग उन पर कटाक्ष करते। इस लिए सादी ने दोनों से मुँह मोड़ने ही में अपना कल्याण समझा, और तटस्थ रहकर दोनों के कृपापात्र बने रहे। उन्होंने गुलिस्ताँ और बोस्ताँ की रचना शीराज़ ही में की, दोनों ग्रन्थों में सादी ने मूर्ख साधु, फ़क़ीरों की ख़ूब ख़बर ली है, और राजा, बादशाहों को भी न्याय, धर्म और दया का उपदेश किया है। अन्ध-विश्वास पर सैकड़ों जगह मार्मिक चोटें की हैं। इनका तात्पर्य्य यही था कि अताबक अबूबक्र सचेत हो जाय और विद्वानों से द्रोह करना छोड़ दे। सादी को बादशाह की अपेक्षा युवराज से अधिक स्नेह था। इसका नाम फ़ख़रुद्दीन था। वह बुग़दाद के ख़लीफ़ा के पास कुछ तुहफ़े भेंट लेकर मिलने गया था। लौटती बार मार्ग ही में उसे अपने पिता के मरते का समाचार
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