पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/१४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

दूसरा अध्याय
शिक्षा


उस समय शीराज़ से बुग़दाद की यात्रा बहुत कठिन थी। क़ाफ़िले चला करते थे। सादी भी एक क़ाफ़िले के साथ हो लिये। उनके घर पर जो माल असबाब था वह सब उन्होंने मित्रों और गरीबों की भेंट कर दिया। केवल एक 'कुरान,' जो उनको उनके आदि गुरु ने दी थी, अपने पास रख ली। इससे विदित होता है कि वह कैसे त्यागी और साहसी पुरुष थे। मार्ग में बीमार पड़ जाने के कारण उनका साथ क़ाफ़िले वालों से छूट गया। लेकिन वह अकेले ही चल खड़े हुए। जिस गांव में वह ठहरे थे वहां लोगों ने समझा था कि आगे का मार्ग बहुत विकट है, किन्तु सादी के पास क्या रखा था कि वह चोरों से डरते। थोड़ी ही दूर गये थे कि डाकुओं से उनका सामना हो गया। सादी ने उन से विनयपूर्वक कहा कि मैं ग़रीब विद्यार्थी हूं, विद्योपार्जन के लिए बुग़दाद जा रहा हूं, मेरे पास शरीर पर के कपड़ों और इस क़ुरान के सिवाय और कुछ