झपट कर महाराज के ऊपर पीछे से वार किया ही चाहता था कि खड्गसिंह ने, जो बराबर महाराज की अंगरक्षा के लिये उनके साथ थे, उसमान का वार अपनी तल्वार पर रोका और गरज कर कहा,-"मूढ़ ! अब मरने के लिये प्रस्तुत हो!"
इस पर उसमान खड्गसिह के साथ भिड गया और कडक कर बोला,-"रह काफ़िर. बदज़ात, हिदू ! ठहर, अभी तुझे जहन्नुम मे भेज देता हूं। ठहर ठहर । "
"चुप रह, नरराक्षस ।"यो कह खड्गसिंह ने एक ही बार में उसे काट गिराया; और देखते देखते सारा मैदान यवनो की लाश से भर गया। उस गहरी मार काट में यद्यपि पचास सैनिक महाराज के भी मारे गए,पर इन अत्याचारी यवनों में से एक भी जीता बच कर भागने नहीं पाया। महाराज और खड्गसिंह की निपुणता से एक भी यवन भागने नही पाया,यह अद्वितीय रणपाडित्य का विषय है।
दोनो स्त्रियां यद्यपि भय से भ्रियमाण होरही थीं,किन्तु शत्रुओं को सहार देख कर कुछ स्वस्थ हुई और पुनः कोई विपद न आवै,' यह सोच कर भय से नीरव हो, जहा की तहां बैठी रहीं और मनही 'मन अपने पक्ष समर्थन करनेवालों को असंख्य धन्यवाद देती रहीं।
दस्युदल के दलन होने पर सैन्यगण महाराज का इंगित पाकर वहांसे हट गए और महाराज उन स्त्रियों के समीप जाकर कहने लगे,-"प्यारी मल्लिका! और सरला! अब भय नही है, अतएव अपना चित्त ठिकाने फगे!"
सरला महाराज नरेन्द्रसिह को सामने देख उनके पैरों पर गिर. फर रोदन करने लगी। महाराज ने उसे उठाकर कहा,-"स्थिर हो, सरला! अब भय नहीं है।"
मल्लिका, उत्सुक नयनों से नरेन्द्र की ओर देखती और अश्रु विमोचन करती थी । सरला ने प्रकृतिस्थ होकर करुणा भरे स्वर से कहा,-"महाराज! इस उपकार के ऋण में दासी सदा बंधी रहेगी, यह ऋण कदापि प्रतिशोध नहीं कर सकेगी। महाराज! आपको महिमा और ईश्वर की दया असीम है, नहीं तो हमलोगों का सर्वनाश होचुका था।"
महाराज,-"सरला! भला यह कौनसी बात है! हमने तुम्हारा मा उपकार किया है ! यह तो अपना कर्तव्यही है। इसमे हमारी