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[सत्रहवां
मल्लिकादेवी।

म्यान से बैंच,बेगपूर्वक मागे बढ़े खड्गसिंह उनके बराबर चले और सा सैनिक अर्द्धचन्द्राकार व्यूह रचकर उनके पीछे पीछे चले। जिधर से आर्शध्वनि सुनाई देती और प्रकाश की चमक आती थी, उसी और महाराज चढ़े। ज्यो ज्यो वे अग्रसर होने लगे,प्रकाश भी आर्चनाद के सग स्पष्ट बोध होने लगा । यद्यपि सघन बन था, पर वहां सघन वक्षावली नहीं थी, अतएव चन्द्रालोक से वहाका दृश्य स्पष्ट दीख पड़ता था। थोडी दूर पर से ही देखा गया कि दोनो यवनों के मध्य में दो स्त्रियां बैठी रोदन कर रही हैं और आठ दस प्रधान यवन उन्हें वेष्टन किए उन पर अत्याचार करने का लाभ कर रहे हैं ! वे परमार कुछ कुछ थोत भी करते जाने थे, पर दूरी के कारण स्पष्ट सुनाई नहीं पड़ता था, परन्तु उनलोगो का मद्यपान करता दिखाई देता था।

यह देख खड्गसिंह ने कहा,-"अब यह स्पष्ट होगया जिथे लोग पठान और तुगरल के अनुचर हैं। अतएव, देव! यदि अनुमति दीजिए तो इन दुष्टों का शीघ संहार करके स्त्रियों को निरापद मापके समीप लेआऊं।"

महाराज,-“देखो, तुम हमारे साथ रहना । हम म्घय इस कार्य में अग्रसर होने की इच्छा रखते हैं । स्नोरक्षा करना वीर का धर्म है, उससे हम बंचित नहीं होसकते; तिस पर इन स्त्रियों की रक्षा से!"

यो कहकर महाराज ने बड़े बेगसे उन आततायियों पर ऐसा धावा किया कि वेयवन एकाएक अपने सिर पर मौत का आपटुनना देख कर एकदम घबरा गए। उन यवनो को महाराज के वीर सैनिकों ने चारोंगोर से घेर लिया और जबतक वे दुराचारी अपने को सम्हालते, आधे से अधिक काट डाले गए।महाराज बडी वीरता से यवनों का संहार करते करते वहां पर जा पहुंचे, जहां पर दो सुन्दरी बैठी हुई अपने दुर्भाग्य को रो रही थीं; किन्तु अब इस लड़ाई को देख, चकित हो, जहांकी तहां भय से ठिठक रही थीं।

उन स्त्रियों की ओर देख, महाराज ने अपनी सुरीली आवाज में कहा,-"अब भय नहीं है, हम आगए।"

योही देखते देखते बान की बात में तीन हिस्से यवनों के काट डाले गए। इतनेही में उसमान, जो उस गरोह का अफ़सर था,