पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/८९

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परिच्छेद]
(८७)
वङ्गसरोजिनी।

यहां पर वैरियो का कोई दल आकर हम लोगों पर आक्रमण करे।"

सालिका,-"चलो प्यारे! मैं तुम्हारे साथ चलने के लिये तैयार हूं।"

युवक,-"तो, तुम इस घोड़े पर चढ़ो !"

बालिका,-(लज्जा से ) "ऐं ? घोड़े पर !!!"

युवक,-(मुस्कुरा कर ) " हानि क्या है ! हम भी तुम्हारे साश रहेंगे।

बालिका,-"तुम पैदल चलोगे?"

युवक,- 'यदि आज्ञा दोगी तोतुम्हारे पीछे हम भी बैठ जायंगे।" यह सुन कर मालिका ने लजित होकर अपना सिर झुका लिया। इतने ही में एक सवार तेजी के साथ घोड़ा दौडाता हुआ बड़ा बापहुंचा और इतना कह कर तुरंत एक ओर को चला गया कि,- 'यहाले सामने की मार जलदी भागो,बैरी पीछे से आरहे हैं।"

इतना सुनते ही चर पर उस युवक ने उस बालिका को घोड़े पर चढाया और उसके पीछे आपभी चढ़ बैठा । उस समय शालिका ने पाहा,-"यह कौन व्यक्ति था, जिसने ऐसे समय में आकर इतना उपकार किया ? "

युवक -"इस विचित्र युवक का परिचय हम कुछ भी नहीं जानने, किन्तु इन ना अवश्य कह सकते हैं कि इस अद्धत व्यक्ति ने समय समय पर हमारे महाराज का बहा उपकार किया है और आज भी इमी महात्मा युवक ने तुम पर अत्याचार होने का वृत्तान्त हमे सुना कर तुम्हारे उद्धार के लिये इस ओर हमको भेजा था और स्वयं भी दूर ले अत्याचारियो पर गोली चलाई थी!"

निदान, इसी प्रकार वह युवक अपनी नई प्रेमपात्री को लिए हुए निर्विघ्न महाराज नरेन्द्रसिह के बतलाए हुए नियत स्थान पर पहुंच गया।

पाठक, यह युवक मत्री विनोदसिंह के अतिरिक्त कोई नहीं है, पर वह बालिका कौन है ? इसका परिचय हम फिर किसी समय प्रदान करेगे।