मेरा इस ससार में नहीं है, तब मैं अनाथिनी कहां जाने के लिये बतलाऊं?"
यह सुन युवा का हृदय भरमाया। उसके मन का भाव बदल गया और उसने करुणा से कहा,-"क्या आपके कुटुंब में कोई नही है ?"
बालिका,-"एक प्रकार नहीं ही कहना चाहिए । दुष्ट नव्वाब के भय से मैं एक वृद्धा के साथ रहती थी, वह वृद्धा मुझे निज कन्या के तुल्य चाहती थी।सो नरराक्षसों ने आज दोपहर के समय उसका बध किया और इस बन में मुझ निराश्रया को लाकर मेरा सतीत्व नष्ट किया चाहते थे कि मापने एकाएक आकर इस विपद से मेरा उद्धार किया।
युवक,--"आप क्षत्रियकन्या जान पड़ती हैं। "
बालिका,--'हां! आपका अनुमान ठोक है।" यो कहकर बालिका न लजा से सिर झुका लिया।
युवा,--"तो चलिए, यहां ठहरना योग्य नहीं है। समीपही सेना की छावनी है, आप निरापद वहां पहुंच जायंगी।"
बाला,--"एक अनुरोध से मैं आपके साथ चल सकूंगी।"
युवा,--"वह क्या ?"
बाला,--'मुझे भूल तो न जाइएगा?"
युवा,--"जीवन रहते कभी नहीं भूलूंगा, चाहे आप भूल जायं।"
बाला,--"आप देवता हैं ! चलिए, मै आपके साथ चलती हूं।"
युवक,--"आपका नाम क्या है, सुन्दरी!"
बालिका,--"आप कृपाकर के थोड़ी देर के लिये मुझे क्षमा करें । तनिक मेरा जी ठिकाने होजाय तो फिर मैं अपनी सारी व्यवस्था आपसे कहूंगी; किन्त इतना मेरा निवेदन है कि आप मुझे "आप" कह कर,न सबोधन करें और यदि अनुचित न हो तो कृपाकर अपना परिचय भी दें।"
युवक,--"सुन्दरी ! क्या तुम हमारे परिचय पाने से संतुष्ट होगी ? अस्तु, अब तुम भी हमें, "आप" न कहो।
बालिका ने, जिसको अवस्था चौदह वर्ष की थी, मुस्कुराकर कहा,-"क्यों नहीं होऊंगी ? अपने उद्धार करनेवाले और धर्म बचानेवाले का यथार्थ परिचय पाकर मैं अवश्य आनन्दित होऊंगी;