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[सोलहवां
मल्लिकादेवी।

हैं, तुम्हे वे अपनी बेगम बनावेंगे।"

बालिका,-'छि ! सत्यानाशी! तेरी रसनाव्याली तुझे डसती क्यों नहीं ? मैं तुमलोगों पर थूकंगी भी नहीं, दूर हो सामने से ! दुराचारी, पापिष्ट!"

यों कह कर रोषान्वित बालिका ने उसका हाथ झटक कर अपना पैर छुड़ा लिया और कातर होकर रोदन करने लगी।

पाठकों ने इन दुष्टों की दुरभिसंधि को समझा होगा।ये सत्यानाशी पठान कहीं से एफ अनाथ बालिका को धर लाए थे, और निज पशु- वृत्ति चरितार्थ करने के लिये निर्जन बन में उसे मर्माहत कर रहे थे। बालिका की रक्षा का कोई उपाय नहीं था, और न उसका ईश्वरभिन्न वहां पर उस समय दूसरा कोई सहायक ही था।"

"तो तुम सीधी तरह से न मानोगी?"यों कहकर उस नरराक्षस यवन ने बलपूर्वक उस बालिका को आलिंगन करने के लिये उसे भूमिपर पटक दिया। फिरवह निज पिशाचोचित पशुवत्ति चरितार्थ करने का विचार कर रहा था कि एकाएक उसी अवसर मे किसीने दूर से लक्ष्य करके ऐसी गोली मारी कि वह व्यक्ति, जो बालिका के सतीत्व नष्ट करने के लिये उद्यत हुआ था, धाराशायी हुभा। यह उत्पात देखकर शेष पठान लोग आश्चर्यान्वित हो, इधर उधर देखने लगे। इतने ही में दो गोलियों के लगने से दो व्यक्ति और मृत हुए,और तष शेष दो व्यक्ति भयसंत्रस्त होकर पलायन करने के लिये उद्यत हुए थे कि कोई अश्वारूढ़ ने सत्वर वहां पहुंचकर क्षणभर में उन दोनों का भी संहार किया। बालिका उस समय मूच्छितप्राय होरही थी,किंतु अपने शत्रुमो को मरते देखकर वह कुछ प्रकृतिस्थ हुई।

अश्वारूढ़ एक युवा व्यक्ति था। उसने अश्व से उतर बालिका के समीप जाकर कहा,-"शुभे ! अब कोई भय नहीं है, आप शात होइए।"

युवा को देखते ही बालिका के हदय में एक अनिर्वचनीय भाव का सञ्चार हुआ। वह लजा से संकुचित हुई और सहसा कुछभी नहीं बोल सकी।

यह देखकर युवा ने पुनः कहा,-"आप कहां जायगी ? कहिए तो हम आपको वहीं पहुंचा दें।"

बालिका,-"आप हमारे रक्षक हैं और आपके भिन्न अबकोई