पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/८३

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परिच्छेद]
(८१)
वङ्गसरोजनी।

बादशाह,--"और भी आप जो कुछ हमसे चाहे, बेरुकावट कहे।"

महाराज,--"यह आपके देवस्वभाव का परिचय है । अस्तु,उस दुष्ट का सिर मैं खुद काट कर मंत्री के ऋण से मुक्त होऊंगा, और उस दुष्ट के मारे जाने के अनंतर बङ्गाल के जिन जिन भूम्यधि. कारियों की स्थावर वा अस्थावर संपत्तिया हर ली गई हैं, वे क्षतिपूरण के सङ्ग उन्हें लोटा दी जाय। "

बादशाह,--"जरूर ! ज़रूर ! इसमें का कहना है ! यह तो मसलहत की बात है। "

महाराज,--"एक बात और भी है। "

बादशाह,--"यह क्या!"

महाराज,--"वह कुछ विशेष नहीं है, केवल यही कि तुगरल ने मेरे समीप दूत के हाथ बड़ा अश्लील पत्र भेजा था।"

बादशाह,-"उस ख़त मे उस नालायक ने क्या लिखा था ?"

इसपर महाराज ने,--"सुनिए;"--यों कह कर उसके पत्र का सब आशय सुना दिया, जिसे सुनकर बादशाह तुगरल पर बहुत ही कुपित हुए और बोले,-

"इससे दो बातें साषित हुई; एक तो यह कि उसीने मत्री को भरवा डाला होगा? और दूसरी यह कि अभी तक उनके घर की औरतें उसके हाथ नहीं लगी होंगी! खैर! देखा जायगा, उसकी मौत अब उसके नज़दीक ही आ पहुंची है। "

इसके अनंतर बादशाह ने मातीमहलदुर्ग के बारूद से उडा देने के रहस्य को कहा और फिर यों कहा,-'जब मैंने अपने अहल- कार के मारे जाने का हाल सुना तो यह जान कर कि 'अब मेरे ख़त के न पाने से आप मेरे पास न आसकेंगे, 'मैं यहां अपने खेमे मे चला आया। मगर महाराजासाहब ! वह अजनबी कौन है, जिसने आपके और मेरे किले को इस खबी के साथ बचाया ! खदा जानता है, मैं उसके एहसानों के बोझ से सर नही उठा सकता।"

महाराज,--"श्रीमान ! मैंने बहुत चाहा कि उस विचित्र युवक का कुछ परिचय पासक, परन्तु वह अपने विषय मे अभी कुछ भी नही कहता।"

बादशाह,--"खैर, तो अगर वह मेरे पास भी आया तो मैं उसे मुह मागा इनाम दूंगा।"