चौदहवां परिच्छेद । अद्धत व्यक्ति। कर व महात्मन् वद किडगेऽहम् । (महाभारत) कस कथानक का क्रम हम, जोकि पूर्व परिच्छेदों में 5 वर्णित हुआ है, यहापर इस प्रकार वर्णन करते हैं। - बगदेश के नवाब की गद्दी पर बैठकर तुगरलयां BA2K का घोर अत्याचार करना और लोगों का अत्यल उद्विग्न होकर अपने उद्धार के लिये दिल्लीश्वर गयासुद्दीन बलवन से प्रार्थना करना;भागलपुर के महाराज नरेन्द्रसिह का बादशाह के पत्र कोएक अपरिचित से पाकर उसपर अपने मित्र मत्री विनोदसिंह के साथ परामर्श करना,और सेनापति गोविन्दसिंह को कुछ समयोचित आज्ञा देकर वृद्धमत्री धीरेन्द्रसिंह के साथ परामर्श करने के लिये विनोद के साथ उनके पास जाना; महाराज के जाने पर उसी शयनमदिर में एक गुप्त पथ से उस अपरिचित व्यक्ति का आना और महाराज के पर्यड पर एक पत्र रख कर वहाले चले जाना,फ़िर महाराज का वहापर आकर उस पत्र का पाना और उसके विषय से अवगत तथा भयाकुल हो, मत्री के साथ परामर्श करके सुरङ्ग मे जल भर देना; उसके दूसरे दिन सुरङ्ग के साफ़ होने पर पचास यवनों के शव का निकलना और महाराज का अपने दुर्ग की सुरक्ष को भीतर से बन्द करवा कर दुर्गरक्षा का यथोचित प्रबंध करना: फिर तोसरे दिन महाराज का अपने वयस्य मंत्री विनोद तथा एक सहस्र अश्वाराही सेना के साथ बादशाह से मिलने के लिये मोतीमहल' नामक गिरिदुर्ग की ओर प्रयाण करना और स्मृग के पीछे भटक कर रातभर वन की गिरिगुहा मे विश्राम करना, प्रातःकाल मत्री विनोदसिंह का जागकर महाराज को न पाना, उन्हें पहुन खोजना, अपने दुपट्टे में एक पुरजे का पाना और फिर निरुपाय होकर नगर की ओर प्रयाण करना, तथा बीच मार्ग में नव्वाब तुगरल की सेना से मुठभेड़ होने पर उस सेना से विजय प्राप्त करके राज्य को गोर
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[चौदहवां
मल्लिकादेवी।