प्यारा, जो थोड़ा सा जल देकर जीवन माल ले ले।
इतना कहकर युवा चुप होगया, पर फिर भी कुछ उत्तर न मिला,तब तोवह झंझलाफर किवाडा पीटता हुआगरजकर बोला,- "अरे,क्या ससारसे दयाधर्म सब उठ गया, केवल जलदान में भी टोटा पड़ गया क्या। हा! अरे हम यहां पर किसी की कुछ बुराई करने नहीं आए हैं और न हम डाकू लुटेरे हैं,जो भारे डर के कोई जवाब नहीं देता। देखो भाई ! अब हमारा कुछ दोष नहीं, यदि अब भी कोई न बोला तो हम किवाड तोड़कर भीतर घुस पड़ेंगे और जो आंखों के आगे आया, उसीसे पूछेगे कि भूले भटके प्यासे बटोही को पानी पिलाना क्या महापाप है !" युवा ने जब इस प्रकार कड़ककर कहा, तब भीतर से किसीने दबे हुए स्वर से कहा,--
"हे बटोही! हमलोग दईमारी अनाथिनी स्त्री जाति हैं । हमलोग डरती हैं कि कहीं आप हमारे शत्रु तो नहीं हैं! हमलोगों के पद पद पर विपद खड़ी है, और यह सूनसान मैदान भी बड़ा भयानक है। तिसपर ऐसी तिकाली बेला आप कौन हैं,जो अपनी तल्वार बैंचे,चन्दाकड़ी जलाते हुए, अधजली हमलोगों को जलाने आपहुंचे! ऐसे समय में पशु पक्षी तो डोलते ही नहीं, आपको क्या पड़ी थी जो यहां ऐसी बेला आकर नाहक हमलोगों को धमकाते और जबर्दस्ती किवाड़ तोड़ कर भीतर घुसना चाहते हैं ! बतलाइए, भाप कौन हैं और क्यो हमलोगों को सताने यहां पधारे हैं।"
इस प्रकार करुणा और भय से मिली बातें सुनकर युवक सन्नाटे में आगया और छिनभर इन बातों का मर्म सोचता हुआ मन में कहने लगा कि,-" ऐं ? ऐसे स्थान मे ऐसी दुखिया कौन है, जो इस तरह दुष्टों के हाथ से दुःख पाकर मनुष्यों को जंगली जानवरों से भी भयानक और दुखदाई समझती है। इस स्त्री के रुन्धे हुए गले के करुणा भरे शब्द साफ कहे देते है कि संसार में कोई ऐसा दुःख नहीं है, जो इस बिचारी के ऊपर न टूट पड़ा हो! तभी यह इतनी डरती, घबराती, चिहुंकती और संकोच करती है कि कौन जाने, कहीं फिर कोई नई आफन न उठानी पड़े ! जोहो,परन्तु इस स्थान और यहां के रहनेवाले में निःसदेह रहस्य कूट कूट कर भरा है, अच्छा देखें, यह भेद क्योकर प्रगट होता है।"