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मल्लिकादेवी

अलावे और कहीं भी बावली, कुवा, या तालाब नहीं दिखाई पडा। आस पास कोई गांव भी नहीं दीख पड़ता था कि वहीं जाकर प्यास बुझाई जाती। युवक निराश हो अपने टूटे फूटे हदय को बटोर कर उसी टीले के चारों भोर, जो कि चौथाई मील के घेरे में था,घूमने और द्वार ढूंढने लगा। खोजते खोजते दक्खिन ओर सघन झाड़ी से घिरा हुआ एक दर्वाजा दिखाई दिया, जिसे देखतेही हमारे वीर युवक के निराश मन में फिर आशा ने प्रवेश किया और कह दिया कि यहां केवल जलही से नहीं, घरन किसी अलौकिक अमृत से भी तुम्हारा कलेजा ठढा होगा, जिसकी तरी जनम भर हृदय पर तरावट का असर पहुंचाया करेगी।

युवा द्वार पर ठहर गया और इधर उधर खूब अच्छी तरह देख भाल कर यह निश्चय कर लिया कि, 'जब तक भीतर से कोई द्वार न खोल दे, तब तक इस खंडहर के भीतर किसी तरह कोई भी नहीं जा सकता । यद्यपि यह खंडहर है, पर इसमें ऐसी विचित्रता है कि दर्वाजे की सहायता चिना भीतर जाना कठिन ही नहीं, परन एक प्रकार असंभव है!"

यह सब देख सुन कर युवा ने फिर सोचा कि, 'या तो यह फिसी पुराने जिमीदार की गढ़ी होगी,या कोई देवमन्दिर जो समय के फेर से इस दशा को पहुंच गया है। और इसके भीतर कोई न कोई अवश्यही रहता होगा। जो हो, पर देखना चाहिए, क्या होता है। पानी मिलता है,यो नहीं। और फिर हमे यहां डर किस बात का है! क्योंकि इस जगह हम किसी से शत्रुता करने,या किसीको व्यर्थ सताने नही आए हैं। इस प्रकार सोच विचार कर युवा आगे बढ़ा और तीस पैंतीस टूटी फूटी सीढ़ी चढ़कर द्वार को जोर से उसने खड़खड़ाया; पर भीतर से कोई न बोला। फिर द्वार को ठोंका, परन्तु फिर भी कोई जवाब नहीं मिला। योंही लगभग आध घटे तक बराबर उसने किवाड़खड़खड़ाया और चिल्ला चिल्ला कर पुकारा, पर भीतरसे किसीने सांस तकनली। अत में युवाने घबराकर और बड़े जोर से चिल्लाकर कहा,-

"भाई,जो कोई इस स्थान में हो, दयाकर थोडा सा जल देकर इस कण्ठागतप्राण बटोही की जान बचावै, यह दैव का मारा अभागा पधिक बिना पानी प्राण दिया चाहता है। है कोई भगवान का