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(४८)
[आठवां
मल्लिकादेवी।

कर डालो। न जाने किस समय काम पडजाय! और सेना जो बराबर भरती होती जाती है, उस पर खूग ध्यान रक्खो,जिसमे कोई कपट- बैरी न आने पावे।"

गोबिन्द,--" जीहां, श्रीमान् ! ऐसा ही होता है और तैयारी दृढ़ता से होरही है, अब बिलय नहीं है ! गढ की गुढ़ता यथावत् हागई और विशेष मालोचना से कार्य होता है, जिसमें बैरी सेना में भर्ती न होने पावे।"

नरेन्द्र,--"वह तो वद्ध मत्रोजी उत्तमता से देखते ही होंगे! उसका विचार हम पीछे करेंगे। पर,देखना,सेनानी विश्वासघातक न निकर जायं।"

गोबिन्द,--"प्रायः हिन्दू सेनानी नियत होते हैं, और जो अन्यान्य जाति के लोग आते हैं, उनकी परीक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता है, आगे ईश्वरेच्छा।"

नरेन्द्र,--"अस्तु तुम सतर्क गढ़ की रक्षा करना, हम प्रातःकाल ही बादशाह के दर्शनार्थ थोड़ी सी सेना लेकर मोतीमहल का जायमे, उसका प्रवन्ध आज स्थिर रहै।"

गोविन्द,--"जो आज्ञा; कितनी सेना श्रीमान के साथ जायगी?'

नरेन्द्र,--"सहस, पर खड्गसिंह अवश्य सग म्हैं । "

गोविन्द,-"अत्युत्तम, वे अवश्य रहेंगे।"

यों कहकर गोविन्दसिंह ने प्रस्थान करना चाहा, पर,-"और सुनो" कहकर और गोबिन्द को ठहराकर नरेन्द्र ने कहा,-

"हमारी यात्रा का वत्तान्त कोई न जान सकै, केवल वेही, जो संग जायगे. जाने।"

"जो आज्ञा" कहकर गोविंदसिह ने प्रस्थान किया, ये यदाके । सेनानायक थे।

विनोद,--"अब चलकर वृद्ध मत्रीजी से भी अनुमति लेलेनी चाहिए।"

नरेन्द्र,--"अवश्य ! हमभी चलते है।"

बिनांद,--"जैसी इच्छा, चलने में क्या हरज है।"

नरेन्द्र,--"तो चलो, मत्रीजी के समीप चलें।"

बिनोद,--"चलो देखा! नवाब को यही उत्तर दिया गया है।"

यों कह उन्होंने एक पत्र नरेन्द्र को दिखलाया, जिसे नरेन्द्र ने '