परिच्छेद ] वङ्गसरोजिनी। आपके पूर्वजो ने जिस घनिष्ठतासे हार्दिक सोह-सहित मैत्री. पाश में बद्ध होकर चिरफाल तक दिल्ली के साथ सबध निर्वाह किया था, मापसे भी उससे कुछ अधिक ही की आशा है। आपके पत्रो से सूबे बङ्गाल की दुर्दशा,जोकि अत्याचारी तुगरल के द्वारा पूर्णरूप से होरही है, सुनकर निरतर अन्तर-क्रोधाग्नि प्रज्वलित होती ही जाती है। यद्यपिदोयार हमारी सेना उस प्रतारक के विश्वासघात से पराजित होगई, पर आपके उत्तम परामर्श, और चित्त की स्वस्थता, तथा बङ्गाल की प्रजा के उद्धार के लिये जो हम दलबल-पूर्वक चले जाते हैं, आपको पूर्व ही से इसकी सूचना देदी है;अतएव अब बिलंय का समय नही है। हम भी तीन दिन हुए, पटने से चल चुके हैं। अब हम शीघ्र पहुंचा चाहते हैं, अतएव आप अपने देश के भूम्यधिकारियों को उत्तेजित कर के संग्राम के साहित्य को उत्तमता और शीघ्रता सेपकत्रित कीजिए। प्रथम और मतव्य स्थिर होने के, एक बार आप हमसे गुप्त रीति से मिलिए । सो भी किस स्थान पर? इसकी सूचना हमारा दूत आपको देगा, पयोंकि कई कारणों से पत्र में उस स्थल का नाम नहीं लिखा गया । आपकी मित्रता से हमें बहुत कुछ आशाहै, जिसका पुरस्कार भाप यथेच्छ लाभ कर सकते हैं ! विशेषु किं वहुति । "आपका अभिन्नहृदय, __गयासुद्दीन बलवन !" पत्र पढ़कर महाराज और मत्री के मुख पर हर्ष की ज्यातिर्मयी प्रभा चमकने लगी।हदय मानदपूर्ण, और बल द्विगुणित होगाया। उत्साह और आशा से वीरभुजा और नेत्र फड़कने लगे। नरेन्द्र ने कहा,-"अब आशा होती है कि उस दुष्ट के सर्वनाश होने में विशेष विलय नही है। " विनोद,-' सत्य है, किन्तु जबतक उसका सर्वनाश न करले, तब तक शत्र से निश्चिन्त होना कदापि योग्य नहीं, क्योंकि आखेट यद्यपि खड़ग के नीचे हो, पर वह किचिन्मात्र अवकाश पातेही चोट फर बैठता है ।। अतएव अभी तुगरल का धोखे में रखनाही कूटनीति का सिद्धान्त है। " ___ नरेन्द्र,-"तुमने यथार्थ कहा । हमारी इच्छा भी इसके प्रतिकूल नहीं है। इसका भार हम तुम्ह और तुम्हारे चचा (वृद्ध मंत्री) को देते हैं। बस जो उचित समझा सो करा। हम भी इससे पृथक नहीं
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