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परिच्छेद]
(३९)
वङ्गसरोजनी।

अक्षर क्या किसी यवन ने लिखे हैं ? परन्तु वीरवर महाराज को वह कैसे हस्तगत करके लेगया ?वे तो हमें शयन कराकर स्वयं पहरा देते थे, तब उस जाग्रत अवस्था में उन्हे किसने हर लिया? पकड़ने के समय कोलाहल भी अवश्य होता? उस समय क्या हम नहीं जागते? तो क्या मित्र संमत होकर उसके साथ गए हैं ? क्यों? ऐसा क्या कार्य था,जो प्राणोपम सखा (हम) को छोडकर घोररजनी में बिना कहे सुने चले गए !!! यह क्या प्रतारक विश्वासघाती पठानों का कुकर्म है? धन्यरी,माया ! धन्य! हा कैसा चित्त उद्विग्न होरहा है! कुछ भी पता नहीं लगता कि मित्र क्या हुए !!!'

अनेक तर्क वितर्क करने पर भीमंत्री ने उसका कुछ निगूढ़ कारण नहीं समझा। अगत्या अश्वारूढ़ होकर सेना के अनुसन्धान में एक प्रसस्त वनमार्ग से वेचलने लगे। कई घण्टे के अनन्तर वे अपनी सेना में पहुंच गए। सेना शिविर स्थापन किए हुए सतर्कतासे पड़ी थी। मंत्री को देखकर सब सैनिकों ने सहर्ष अभिवादन कियाएक सेनाध्यक्ष मंत्री का अतीव प्रियपात्रथा,नाम उसकाखड्गसिंहथा। सो, महाराज को न देखकर सब सैनिक आतुर होरहे हैं, यह जानकर एकान्त में उसने मंत्री से कहा,-"प्रभू! आपने महाराज को कहां छोड़ा ?"

मंत्री,-"विधि के हाथ।"

खड्ग,-" यह क्या ?"

मंत्री की आंखों मे मांसू भर आए, उन्होंने दीर्धनिश्वास लेकर कहा,-" खड्गसिंह ! कुछ कहने की बात नहीं है।"

खड्ग,-"क्या अमङ्गल !!!

मंत्री,-"यदि ऐसा निश्चय हो तो हम अभी प्राण विसर्जन करें।"

खड़ग,-" भई, बात क्या है, सो तो सुनें! आपकी बातों से उत्तरोत्तर अधीरता बढ़ती जाती है । "

"ऐसा विषय ही है;"यों कहकर मत्री ने सब आनुपूर्विक घटना खङ्गसिंह कोसुनाई,जिसे सुन क्षणभर चुप रहकर खड्गसिंह ने कहा,-"यह कार्य अवश्य नव्वाब का है,इसकाशीघ अनुसंधान करनाचाहिए।

यही बात स्थिर कर और सैनिकों को प्रबोधवाक्य से संतुष्ट करके मंत्रीमहाशय शीघ सेना के साथ आगे बढ़े। कई कोस जाने पर सभोंने बिना स्नानाहार किए ही राज्य की ओर गमन किया। मध्याह के समय वनस्थली छोड़कर सैन्यदल राज्य की ओर बढ़ा जाता था।