यमदूत सरीखे दस-बारह यवन आ पहुंचे। उन्हें देखकर मल्लिका मूर्छित होगई । यद्यपि सरला चैतन्य थी, पर उसे भी अधमरी ही कहना चाहिए। दोनों सुन्दरियों को देखकर मुसलमान आनन्द से कूदने लगे; और दोनो को बांध, पालकी में डाल कर वहांसे चल दिए । सन्ध्या होने में बहुत देर न थी।
वे सब मुसलमान, जो गिनती में पचास से कम न होंगे, घोड़े पर सवार हो, चारों ओर से पालकी को घेर कर चलने लगे। पालकी के भागे आगे बड़ी शानोशौकत से जो मुसलमान सब्जे घोड़े पर सवार था, वही इस गरोह का सर्दार मालूम देता था। उसका नाम उसमान था, और उसके बगल में, ज़रा पीछे को दया हुमा जो नौजवान मुसलमान सफ़ेद घोड़े पर सवार था, वह उसमान का मुसाहब था। उसका नाम रहीम था।
रहीम ने उसमान से कहा,-"क्यों हज़रत ! नव्याबसाहब तो सिर्फ मलका (मल्लिका) के स्वाहां हैं, फिर आप उसके साथ एक दूसरी नाज़नी को किस ग़रज़ से लिए जाते हैं ?"
उसमान,-(मुस्कुराकर) "क्या, इसका सबब मियां रहीमखाँ को बतलाना होगा! खैर सुनो, इस दूसरी औरत को मैं अपनी बीबी बनाऊंगा । इस ग़रज़ से कि जब मलका (मल्लिका) के दाम में नव्याबसाहब पूरे तौर से फंस जायंगे, तो इस औरत के जरिए मैं अपना बडा काम निकालंगा; क्योंकि इस औरत के साथ मलका (मल्लिका ) की निहायत दोस्ती है।"
निदान, वे सब तेजी के साथ बढ़ते हुए चले गए। पाठक! यह उसमान ही युवा (नरेन्द्र ) के जाने के बाद झाड़ी से निकला था। यह सारा बखेड़ा इसी दुष्ट का था । सो जब वे सब तेजी के साथ बढ़ने लगे तो उनके पीछे पीछे, वही अजनबी भी जाने लगा, जो उसमान के बाद इस दिन भाड़ी के अंदर से निकला था।