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(२६)
[चौथ
मल्लिकादेवी

आज उसी मल्लिका-कुम्हिलाई हुई मल्लिका को कभी नहीं चीन्ह सकेगा। अहा! सरला बाला ने यह क्या किया ? क्यों अपने कंचन से शरीर को मिट्टी कर दिया ? बस, विधिर्वलीयान् ! मल्लिका चिंता में डूबी थी,उसी अवसर में वहां सरला पहुंची। मल्लिका बार बार राजा की दी हुई अंगूठी और मोती की माला को देखती और बार बार उसका चुम्बन करती थी।

यह इतनी उनमनी होरही थी कि उसे सरला का आना नहीं जान पड़ा। सरला ने मल्लिका की दशा देखकर न जाने क्यों एक ठंढी सांस भरी और कहा,-'सखी मल्लिका! तुम इतनी अधीर क्यों होती हो ?प्यारी! ऐसा करने से कष्ट के अलावे और क्या होगा?"

मल्लिका इतनी विचार मे डूबी हुई थी कि उसके कानों में सरला की सरलध्वनि नहीं गई। यह जानकर सरला ने उसके पास बैठकर उसकी ठोढ़ी धरफर आदर से कहा,-"मल्लिका! क्यों अधीर होती हो? आज तो महाराज के आने की बात हैन?"

मल्लिका चिहुंक उठी, उसने सामनेही सरला को देखकर अपने मन के भाव को छिपाने का अवसर न जान लजित होकर कहा,- "सरला ! मां अच्छी हैं ? तू कब आई ?"

सरला ने ठण्ढी सांस भरकर कहा, "वे अच्छी हैं, मैं अभी तोचली आती है।

मल्लिका.-"मां ने क्या कहा ? "

यो कह कर वह लजा से सिमट गई: तब सरला ने कहा,- "अभी तक मां नहीं समझती, पर अब विशेष विलम्ब नहीं है; मैं भाज ही सब ठीक करूगी।"

मल्लिका,-"बिना मा की आज्ञा के!"

इससे अधिक, लज्जा से मल्लिका कुछ कह नहीं सकी। सरला कुछ कहा चाहती थी, कि बाहर महा कोलाहल आरंभ हुआ, वह आश्चर्य्यित हो इधर उधर देखने लगी। इतने ही में एक वृद्ध ने आकर कहा,-"सरला! मर्वनाश !!!"

सरला,-(घबरा कर ) "भट्टाचार्य महाशय! यह क्या है ?"

भट्टाचार्य,-"सर्वनाश! यवनों ने तुम्हारा पता लगाकर इस मन्दिर को घेर लिया है । अब बचने की कोई,आशा नहीं है। "

यों कहकर भट्टाचार्य ऊर्द्ध श्वास से भाग गए। इतने ही में वहाँ