लिये वहीं वृक्ष के नीचे खड़ा था, सो युवा को देखते ही उछल पड़ा। युवा उस पर सवार होकर चला। उस समय उसके मन में वर्तमान माश्चर्यघटना एक एक करके उदय होने लगी।
पाठक, इतना समझ गए होंगे कि जिसने द्वार खोलकर युवक को भीतर बुलाया था,उस सुन्दरी का नाम सरला था,और युवक की हदयहारिणी का नाम मल्लिका।
युवक के प्रस्थान करने के पाव-घंटे बाद उसी झाड़ी में से, जिसके बाहर युवक का घोड़ा खड़ा हुआ था, एक कद्दावर जवान बाहर निकल आया और इधर उधर देख, तथा उस मंदिर के सदर द्वार को ध्यानपूर्वक देख-भालकर मंछों पर ताव देता और यों कहता हुआ, वह फिर उसी झाडी में घुस गया कि,-"अल्हम्द लिल्लाह ! अब तो मेरे पौधारह हैं ! नव्वाब साहब जिस परीपैकर की खोज एक मुद्दत से कर रहे हैं, उसका पता मैं आज आख़िर पाहीं गया ! बस, अब क्या पूछना है ! नव्वाप साहब से जब ख़ब इनाम लेलंगा, तब इस नाज़नी का पता बताऊंगा । लेकिन वाह, नरेन्द्र भी कैसा बहादुर है कि जिसने बात की बात में कासिम जैसे बहादुर को मार गिराया ! वल्लाह, मैं तो सिर्फ नरेन्द्र की खोज में इत्तिफ़ाकिया, इधर आ निकला था और इसके घोड़े को यहां देख, झाड़ी में छिप गया था; मगर खुदा के फ़जल से नरेन्द्र के अलावे आज उस गुलबदन का सूराग भी मैं पागया, जिसके लिये नव्याब साहब एक सायत से दीवाने होरहे हैं!"
इसके बाद वह झाड़ी में से अपने घोड़े को बाहर ले आया और उसपर सवार होकर एक ओर को रवाना होगया। उसके जातेही एक और शख्स उसी झाड़ी मे से निकला और इधर उधर देख एक ओर चला गया। यहां पर यह कह देना हम मुनासिब समझते हैं कि इन दोनों में से पहिला व्यक्ति यवन और दूसरा हिन्दू प्रतीत होता था।