पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/२५

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परिच्छेद]
(२३)
वङ्गसरोजनी

यह सुन सरला समझ गई और शीघ्रता से उठकर उसने युवा का हाथ थाम लिया और झटफार कर बोली,-" तो मेरा परि- तोषिक कहां है ?"

युवक ने,--" यह लो-"यों कह और दो मोती की माला उसे देकर कहा,--"एक तुम्हारी और एफ तुम्हारी सखी की है।

"सरला,--"महाराज! आप सखी को बहुत चाहते हैं ?"

युवक,--" उसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारे पास नहीं है। "

यह सुन सरला महा आनंदित हुई। उसने हंस कर कहा,- "महाराज! आप नरेश हैं, इस लिये इस कन्या पर आपका प्रेम क्या बराबर बना रहेगा?"

युवक,--"इस बचन से बढ़ कर बन में भी शैल के विदारण की क्षमता नहीं है!"

सरला,-"तो मेरी सखी को सदा स्मरण रखिएगा, यही प्रार्थना है !

युवक,--"क्यों फटे पर मोन छिड़कती हो! क्या हृदय चीर कर दिखावैं ? वहां देखोगी कि तुम्हारी सखी विराज रही है। सरला,"बहुत हुआ,. महाराज ! आप देवता हैं और भाग्यवान भी हैं।

युवक,--"कैसे?

सरला,--"आपने जिसे ग्रहण किया है, यह आपके योग्य असाधारण रत्न है।

युवक,--"क्यों कर ?

सरला,--"आगामि पूर्णिमा को निवेदन करूंगी! -

इतना कहकर सरला चली गई । युधक हाथ मुंह धोकर अपना घेशविन्यास करके चलने के लिये तैयार हुए।इतने ही में मल्लिका लजा भरे भावों से सन्मुख आकर घोली,-"फिर तुम आओगे न?"

"अवश्य" कहकर युवा ने उसका कपोल चुग्यन किया । वह लजित होकर संकुचित होगई और युवा ने सहस्र अनिच्छा रहने पर भी वहाले प्रस्थान किया।द्वार पर सरला मिली। उससे पुन: आने की प्रतिज्ञा कर और भवानीपति को प्रणाम कर के युवक अश्व की खोज में चले ! वह विचारा अपने स्वामी की सेवा के