पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/१२२

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( १२०) मल्लिकादधी। [ चौबीसवां चौबीसवां परिच्छेद HEE निशीय में। "तस्मै नमो भगवते कुसुमायुधाय ।" (भर्तहरि) DEEEGधी रात बीत चुकी थी, जब महाराज पूइष्ट मंदिर के आ समीप पहुंचे थे। वहां जाकर उन्होंने देण्या कि,- कपाट भीतर से बंद है।" यह देख घे धीरे धीरे कराघात करने लगे। कुछ देर मे भीतर से क्षीणस्वर से किसीने कहा,- प्रश्न,-"इस समय कौन किवाड़ पीट रहा है ?" उत्तर,-"आशाजीवन, नरेंद्रसिह !" प्रश्न,-"किसे चाहते हैं ?" उत्तर,-"जो प्रश्न कर रहा है।" प्रश्न,-'गाय कह सकते हैं कि प्रश्नकारी कौन है ?" उत्तर,-"सरला !!!" प्रश्न,-"यदि वही हो तो परस्त्री से घोर रजनी में एकान्तस्थल में आपको क्या प्रयोजन है ?" उत्तर,-"छिः! इतना मद आशय ! और हमारे संग!" प्रश्न,-'अन्तु, क्या प्रयोजन है, सो तो कहिए ?" उत्तर.-"कुछ है सही,पर सन्मुख हुए बिना नहीं कह सकते।" प्रश्न,-"अच्छा!आपके नरेन्द्रसिंह होने ही मे क्या प्रमाण है ?" उत्तर,-"यह नई बात हुई, इमका उत्तर हम का दें! प्रत्यक्ष में प्रमाण की क्या आवश्यकता है ?" प्रश्न,-"है, क्योंकि मैं परीक्ष में हूं?" - उत्तर,-"अब हम परास्त हुए, इससे अधिक हम और कुछ नहीं कह सकते? प्रश्न,-"परास्त हुए! और वीरवर होकर एक अवलासे !!!" उत्तर,-"आपाततः ऐमाही है, क्योंकि 'अवला यत्र प्रवला'।"