परिच्छेद ] बङ्गसरोजिनी। ( १९६) - MANAMA w पैदल हैं।" युवा,-"नहीं उसकी भी इस समय आवश्यकता नहीं है। हम इस समय पैदल ही जायंगे। हां, तुम हमसे फिर भेंट करना।" ___ वीरसिंह,-" अवश्य ! निरंतर दर्शन करूंगा। "यों कह कर धीरसिंह ने प्रस्थान किया। पाठक! जाना आपने! ये युवा हमारे परिचित महाराज नरेंद्रसिंह थे। किसी गुप्तचर से महाराज के इधर आने का वृत्तांत सुनकर नव्वाब ने वीरसिर और एक पठान को इधर भेजा था,पर वीरसिंह ने तो पहिलेही सरला से सब पूर्ववृत्तान्त सुनकर अपनी मूर्खता पर पश्चात्ताप कर महाराज से निज अपराध को क्षमा कराया था; और पुन:अपने संगी यवन से मिल कर उसे इस कार्य से दूर करदिया था, जिसका हाल हम कह आए हैं। परन्तु फिर जब नवाब ने किसी गुप्तचर से नरेंद्रसिंह का एकाकी किसीओर जाने का वृत्तान्त सुना तो इनके मारने के लिये उसने एक यवन के साथ वीरसिंह को इधर भेजा। पहिले तो वीरसिंह ने उस यवन को इस गर्हित कार्य से बहुत रोका, किन्तु जब उसने धीरसिंह की बात नमानी और नव्वाब से उनकी चुगली खाने की धमकी दी तो वीरसिंह ने उस पामर यवन को युद्ध करके मार डाला । उसी के मरे हुए घोड़े और (उसकी) लाश को मार्ग में नरेन्द्रसिंहनेदेखाथा। सरला,वीरसिंह और महाराज का समागम-वत्तान्त हम पहिले कह आए हैं, यह उसके बाद का प्रसंग है। अस्तु, वीरसिंह के गमनानन्तर महाराज आगे बढ़े। . आगेजाने जाते महाराज नरेंद्रसिंह मनही मन एक भयङ्कर बात पर विचार करने लगे, जिसका नामास अभी उन्होंने वीरसिंह से पाया था और जिसे सुन वे एक प्रकार धैर्यच्यत से होगए थे। वीरसिंह ने अभी नरेंद्रसिंह से यह बात कही थी कि,-'आपके यहां कोई ऐसा गुप्त भेदिया अवश्य है, जो छिपे छिपे नव्वाब तुगरलखा के पास आपके यहांके गुप्त से गुप्त समाचार पहुंचाया करती है।'यह एक ऐसी भयानक बात थी कि जिसने महाराज का ध्यान अपनी ओर आकर्षण किया था और वे उस पर विचार करते करते आगे बढ़ रहे थे।
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