( ११८) मल्लिकादेवी। तेईसवां बहुत दूर नहीं गया होगा कि पुनः उसकी गति रुद्ध हुई। उसने बिचारपूर्वक देखा तो विदित हुआ कि,-'एक पठान कटा हुआ भूशय्या पर पतित है !' यह देख कर युवा के आश्चर्य की मीमा नहीं रही, और,-'क्यों कर यह मरा, वा किसने इसे मारा, यह कुछ भी वह न समझ सका । युवा थोड़ी देर बही खडाखडासोचने लगा। इतनेही में एक अपर व्यक्ति ने आकर अभिवादन किया। युवा स्तंभित होकर क्षण भर मौन रहा, अनन्तर कुतूहलाक्रांत होकर उसने पूछा,-"तुम कौन हो ? इस समय हमसे तुम्हारा क्या काम है ?" भागतुक,-"महाराज!दास को चीन्हते नहीं ? स्थिर होइए !" युवा,-"तुम परिचत से योध होते हो ? क्या वीरसिंह !!!" वीरसिंह,-"महाराज ! आज दास ने पूरा स्वामिकार्य कर के अपने पापो का प्रायश्चित्त किया।" युवा,-"वीरसिंह ! इस घोर रजनी में तुम यहां क्या करते हो ? ऐं तुमने क्या कार्य किया ? " वोरसिंह,-"आपको कुछ वस्तु मार्ग में मिली थी ?" युवा,-"हां! एक मृत अश्व और दूसरा मरा हुआ यवन !" चोरसिंह,-"ठीक है, वह व्यक्ति आपके आज इधर आने की यात किसी गुप्तचर से सुनकर आपसे कुव्यवहार करने के अर्थ आया था। मैने पहिले उसे आपाततः समझाया, किन्तु जन उसने मेरी बातें न मानी तो मैने युद्ध द्वारा उसे मार डाला। यही कारण मेरे इस बन में घोर रजनीयापन करने का है। " यवा.-"धन्य! आज तुमने यथार्थ में हमारा उपकार किया। इसका पारितोषिक तुम्हें अवसर पर अवश्य मिलेगा।" .' धीरसिंह,-"दास इस कृपाही का भूखा है। महाराज ! आज कल आग सावधानी से कार्य करें, आपके यहां कोई भेदी अवश्य है, जो नव्वाब को गुप्त समाचार देता है । अस्तु, आज्ञा हो तो इस समय दास आपके सङ्ग में रहै। रात्रि का समय है और आग एकाकी हैं।" युवा,-"नही, वीरसिंह ! कोई चिन्ता नहीं । हमलोगों का महायक ईश्वर है, वही सदा रक्षा करैगा । इस समय हम एक आवश्यक कार्य के लिये जाते हैं, अतः तुम मम प्रस्थान करो।" . वीरसिंह,-"जैसी आज्ञा, आप मेरा घोड़ा लेलें, क्योंकि माप
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