बाईसवां परिच्छेद.
सरला की संक्षिप्त कथा।
“ विधिर्बलीयान् बलिनाम् । "
(भागवत )
XXमलादेवी की एक दूरसंपीया भगनी थी, उनका नाम
क तरला था। दोनों भगिनी मे परस्पर विशेष सद्भाव
था। बिना जाने यह कोई भी नहीं कह सकना था
marate fक तरला कमला की सहोदरा भगिनी नहीं हैं।
नरला को एक बालिका हुई, किन्तु हा! महाकष्ट के समय, जब
तरला को अष्टम मास का गर्भ होचुकाथा,उसी समय दैवदुर्विपाक-
वश वह विधवा होगई । यद्यपि तरलादेवी सती हुभा चाहती थीं,
किन्तु अन्तःसत्वा होने के कारण लोगों ने उनकी अभिलाषा पूर्ण
न होने दी; फिन्तु उसी शोकाग्नि से तरला की महा शोचनीय
अवस्था होगई थी। तरला के दोनों कुल में कोई भी ऐसा नहीं था,
जिसका आश्रय वह लेती, और इतना विभव भी उनके पास नहीं
था, जिससे अन्यान्य व्यक्ति उनसे नाता लगाते; किन्तु उस समय
एकमात्र कमला ही तरला की आधार थी। उस समय कमलादेवी
पिता के यहा थीं।
दो मास के अनन्तर सरला ने एक कन्यारत्न प्रसव किया।
उस दुस्लमय में, जो कि वैधव्य दुःख के कारण हुभा था, कन्या के
जन्म से तरला की अधीरता की सीमा न रही। दो दिन तक तो
शांति रही, तृतीय दिन से तरलादेवी उत्कट व्याधिग्रस्त हुई।
यद्यपि कमला ने किसी प्रकार भी सेवा सुश्रषा और औषधि आदि
में त्रुटि नहीं की थी, तथापि उस व्याधि से तरला ने शान्तिलाभ
नहीं किया, और दिन दिन वह अतिशय कातर होने लगीं। सात
दिन के अनन्तर कन्या को कमला की गोद में डालकर तरला ने
स्वर्गारोहण किया।
पाठक ! उस समय कमला को कितना शोक हुआ होगा! यह
भुक्तभोगी के बिना कौन सहज ही अनुभव कर सकता है ! किन्तु
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[बाईसवां
मल्लिकादेवी।