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परिच्छेद]
(११३)
वङ्गसरोजिनी।

पाठक ! चीन्हा आपने! सरला और सैनिक कौन हैं ? यदि न जान सके होतो आप अभी उपन्यास पढ़ने के उपयुक्त पात्र नहीं हुए हैं।

हमारे पूर्वपरिचित वीरसिंह सरला के पति हैं। वे आज निज स्त्री से दैवात् नरेन्द्रसिह की निर्दोषिता सुनकर उसके सत्य परामर्शानुसार निज अपराध क्षमा कराने के लिये महाराज नरेन्द्रसिंह के समीप आए थे । उनसे और महाराज से जो बातें हुई, वे पाठक गत परिच्छेद मे पढ़ चुके हैं।

वीरसिंह ने सुना था कि नरेन्द्रसिंह आज एकाकी एक स्थान को जानेवाले हैं। यह जान कर अपना बदलालेने के लिये एक अपरव्यक्ति को दुसरी ओर इसीलिये भेज कर स्वयवे नरेन्द्र की खोज में आए थे। किन्तु मार्ग में अनायास सरला से मिलकर उनका सब भ्रम दूर हुआ और पश्चात्ताप करके उन्होंने उस व्यक्ति को,कि जिसे दूसरे मार्ग से भेजा था, रोकने के लिये प्रस्थान किया। उस समय वीरसिंह को निज बुद्धि पर महाक्षोभ हुआ और उन्होंने निश्चय किया कि मनुष्य को पूर्वापर विचार कर तब किसी विषय में अग्रसर होना चाहिए।

निदान वीरसिंह शीघ्रता से उस ओर गए, जिधर उन्होंने एक अपर व्यक्ति को नरेन्द्र के मारने के लिये भेजा था। सो उधर'जाकर वीरसिंह ने उस व्यक्ति को तो विदा कर दिया था और फिर उन्होंने महाराज नरेन्द्रसिंह से मिलकर जो कुछ बातें की थीं, उन्हें हम गत परिच्छेद में लिख आए हैं।

सरला जब आध घटे के लिये वीरसिंह को एकाम्न में लेगई थी, उस समय की उन स्त्री-पुरुषो की रहस्यमयी वार्ता से हमको या हमारे पाठकों को कोई मतलब नही है। हां,यह जानना परमावश्यक है फिसरलाने वीरसिंह पर सारा रहस्य प्रगट कर दिया था, किंतु अपने रहने को स्थान उनपर नही प्रगट किया था । और वीरसिंह को इस बात का निषेध कर दिया था कि घे नरेन्द्र पर मल्लिका के परिवार विषयक रहस्य को अभी प्रगट न करें। जैसा कि वीरसिंह ने भी किया था और यह पात हम लिख आए हैं।