"न बंचनीया प्रभवोऽनुजीविभिः।"
(भारवि)
NARADHदशाह की सेना तुगरलखां की सेना की अपेक्षा
आना अत्यल्प थी, क्यों कि मादशाह की सेना
र अभी भी पटने से नहीं आई थी; और इधर उधर
AliMORER संग्राम छिडजाने के कारण अभी उसके आने की भी
आशा कम थी, एतदर्थ महाराज नरेन्द्रसिंह ने बडी बुद्धिमत्ता के
संग कूटयुद्ध का अवलंबन करके तुगरल के सर्वनाश करने का
सङ्कल्प किया था। शाहजादे मुहम्मद को सहस सेना के संग उत्तर
की भोर, जाफ़र सेनापति को सहस सेनाके सग दक्षिण की ओर,
खड्गसिंह को सहस सेनो के संग पश्चिम की ओर भेज कर स्वयं
विनोद के संग वे पूर्व की ओर रहे। जब जहां पठानों का उपद्रव
होतातो शीघता से पहुंच कर उन पर पंजा झाड पड़ते,और उनका
सर्वनाश करके उनका तम्बू जलाते, और वस्तु लूटते थे। शत्रुगों के
पीछा करने पर सघन वन में और गिरिगुहाओं में छिप जाते थे। अतएव
शत्रुवर्ग उनका पीछा करके भी उनका अनुसन्धान नहीं पासकते
और हताश होकर स्वय इधर उधर पलायित होते थे। इस प्रकार
केयर से पठान लोग महा क्षतिग्रस्त हए और कौरवकल की तरह
पठानकुल शीघता से नष्ट होने लगा। तथापि तुगरलखां इतने पर
भोपूर्वापेक्षा अधिक उत्तेजित और क्रोधांध होकर सैन्य संग्रह
और दस्युदल बढ़ाकर उत्तरोत्तर अधिक उत्पीड़न करने लगा।
बङ्गाल,विहार और उड़ीसा के प्रायः छटे लुच्चे, बदमाश,लुटेरे, इसके
दलभुक्त थे,पर कदापि वे इस बार बादशाह की सेना से विजयी
नही हुए । तुगरल ने बहुत इच्छा की फि,-'भागलपुर के गढ़ को
हस्तगत करे, या उसको ढाह कर भूमिसात् फरदे; किंतु महाराज
कीसतर्कता से उसे कभी भी सफल-मनोरथ होने का अवसर नहीं
मिला, न उसने इस कार्य में व्यर्थ कालक्षेप ही किया। किन्तु यह
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[बीसवां
मल्लिकादेवी।