लिए गई थी, उमी दिन पूजन से निश्चिन्त होकर कमलादेवी घर में आती थी, सोई मल्लिका की यह दशा देख आनन्दित होफर बोली थीं। उन्हें मल्लिका का सब रहम्य मरला से विदित होगया था,जिससे घे निज अनुराग स्त्रोत को रोक सकी। उस समय सुशीला यहां पर नहीं थी।
कमला ने मल्लिका का आंसू पोंछ उसे गले लगा कर कहा,- "बेटी,मल्लिका! तू बड़ी भाग्यवती है ! देख भागलपुर के महाराज मे यह वस्तु तुझे दो है । सावधान ! इसे यत्न से रखियो।
कमला को बातों से मल्लिका के हृदय में साहस को उदय हुगा और वह लजा से मृयमाण होकर कहने लगी,-" मां! मैं नहीं लेती थी, किन्तु वे हठ से इसे दे गए हैं। मैं इसे भी दूर कर दूंगी। मां! मेरा इसमें क्या दोष है ?"
यों कह कर मल्लिका रोदन करने लगी। कमलादेवी ने उसका मुख चुम्बन और अश्रुमार्जन करके कहा.-"डर क्या है, बेटी! इसमें क्या क्षति है ? ही देगए हैं, तो क्षति क्या है ? सावधानी से इसे अपने पाम रक्खो-सुशीला कहां गई है ?
कमला मे मल्लिका का ध्यान दूसरी ओर लाने के छल से कहा,- "सुशीला काहां गई है ?"
मल्लिका,-"क्या जानूं , मां! यहुत देरसे वह उधर गई है।"
कमला,-"अच्छा, मैं उसे भेजती हूं।"
यों कह और मल्लिका को उसी अवस्था में छोडकर कमलादेवी वहांसे चिता करती चली गई। क्षण काल के अनन्तर उसी गृह में सुशीला ते प्रवेश किया। सुशीला को ओते देखकर मल्लिका ने अंगूठी गौर माला छिपाना चाहा,पर मनोरथ विफल हुमामोंकि उसने मल्लिका का हाथ पकड़ कर माला और अगूठी छीन लिया और कहा,-" भला, मल्लिका जीजी ! भला यह पात! और मुझी से चोरी १ अच्छा समझ लंगी।"
मल्लिका,-"चोरी काहे की! क्या तेरा मुझे डर पडा है,सुशीला!"
सुशीला,-"नहीं डर काहे का! तो फिर छिपाती क्यों थीं?"
मल्लिका,-"क्यों छिपाऊ? और तुझसे?एँ!मुझसे ही ऐसी बात?"
सुशीला,- "इससे हानि क्या हुई ? जीजी ! ऐं तुम इतना चिढ़ती यों हो?