पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/९६

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(.८७ ) किसलिये तुमने आर्य रमणी होकर उसे आर्य शिक्षा और आर्य नीति से दूर करना चाहा था ? किसलिये भूखे भाइयों में उसे श्रीमन्ताई का ताज पहनाया था ? किसलिये गुलाम देश में मरने वाले को स्वाधीन देशों की हवा खाने दी थी ? यह सब किया था-तो यह काँटा क्यों रहने दिया कि वह हिन्दू है और हिन्दुस्तानी है। इसी ने गजब किया ! उसी हिन्दू और हिन्दुस्तानी पने के नाम पर आज वह योद्धा. बना है ! उसी हिन्दुत्व और हिन्दुस्तानी पने के नाम पर वह जूझ रहा है। आर्य मा का दूध पीकर यह कब सम्भव था कि जब करोड़ों आत्माएँ अपमान से अवनत पड़ी थीं-वह यौवन के रस रहस्य में मस्त रहता ? लाखों भाइयों को भूखा और नंगा-तथा अनाथ देख कर-पैरिस के धुले कपड़े पहनता और तुम्हारे षडरस. व्यंजन करता ? यह उसकी गैरत का, उसकी मर्यादा का, उसकी कुलीनता का प्रश्न था कि वह श्रीमन्ताई के मुकुट पर लात मार कर, भोग विलासों से घृणा करके-उसी आर्यत्व के नाम पर सच्चे योद्धा की तरह मोर्चे का अग्रभाग लेकर लाखों विमूढ़ आत्माओं को मर्द बनने का मार्ग दिखावे जिस सभ्यता पर तुमने मा होकर उसे ढकेला था उसी ने उसे असभ्य पशुओं की तरह बाँध रखा है। इस पर चकित मत होना, वह वास्तव में पराई सभ्यता थी वह नहीं