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( ६३ ) लाओ क्षण-भर ही में रेवती सशरीर सामने आ खड़ी हुई। दारोगा के काटो तो खून नहीं । मैंने उनकी तरफ न देख कर रेवती से - "रेवती, कभी तू ने इनसे बातचीत की थी ?" "कभी नहीं ?" दारोगाजी ने घबराकर कहा-“यह नहीं हैं साहब।" मैंने रेवती को जाने का इशारा करके कहा- "जनाब, मैं आप पर हतक का दावा करू गा ?" डिप्ट साहब अब तक चुपचाप बैठे थे। बोले-आपके कुल कितनी बहन हैं ? मैंने कहा--"एक यही है।" "यह आपके साथ उस दिन मेरठ जा रही थीं ?" यह कल ही कलकत्त से आई हैं।" "तब उस दिन आपके साथ कौन थी ?" "किस दिन ? मुझे कुछ याद नहीं आता। आप किस दिन की बात कह रहे हैं ?" दारोगाजी बोल उठे-"यह तो अच्छी दिल्लगी है।" मैंने कहा-'जनाब, दिल्लगी के योग्य मेरा-आपका कोई